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________________ बाहुबली ४६८ बुद्धि की परिभाषा उसे दिव्य दंडरत्न दिया। भरत उसको लेकर बाहुबली बुद्धबोधितसिद्ध प्रतिबोध से दीक्षित होकर मुक्त पर प्रहार करने दौड़ा। बाहुबली ने सगर्व मन ही मन होने वाले। (द्र. सिद्ध) सोचा ---मैं भरत का इस दिव्यरत्न के साथ ही साथ बुद्धि-विशेष प्रकार का बोध । नाश कर देता हूं । धिक्कार है भरत को ! वह तुच्छ राज्य के लिए अपनी प्रतिज्ञा को भंग कर रहा है । मैं | १. बुद्धि की परिभाषा ऐसे भ्रष्टप्रतिज्ञ को मारना नहीं चाहता । मेरे लिए २. बुद्धि के पर्याय प्रव्रज्या का मार्ग ही श्रेयस्कर है। उसने तब भरत से *.बुद्धिः अश्रुतनिधित मति (द. आभिनिबोधिक ज्ञान) कहा-मैं अपना राज्य तुमको देकर प्रवजित हो जाता | ३. औत्पत्तिकी बुद्धि को परिभाषा हूं। भरत ने बाहुबली के पुत्र को राज्य सौंप दिया। ० उदाहरण बाहुबली ने सोचा-पिता के पास मेरे अन्य भाई ४. वैनयिको बुद्धि की परिभाषा पहले से प्रव्रजित हैं। वे अतिशयज्ञानी हैं। मैं अनतिशय ० उदाहरण ज्ञानी उनके पास कैसे जाऊं। अच्छा है, मैं यहीं साधना ५. कर्मजा बुद्धि की परिभाषा में स्थित होकर, केवलज्ञान प्राप्त कर, फिर ऋषभ के ० उदाहरण पास जाऊं। ६. पारिणामिको बुद्धि की परिभाषा यह सोचकर बाहुबली प्रतिमा में स्थित हो गए। ० उदाहरण उनका मन अहंकार के शिखर को छू रहा था । ऋषभ को यह सारा ज्ञात था, परन्तु उन्होंने बाहुबली को ७. बुद्धि के गुण : श्रुतग्रहण की प्रक्रिया समझाने किसी को नहीं भेजा। वे जानते थे कि अभी १. बुद्धि की परिभाषा बाहबली अहंकार से अन्धा हो रहा है । इस समय वह समझ नहीं सकेगा। 'अमूढलक्खा तित्थयरा'-तीर्थकर अत्थस्स ऊह बुद्धी। (दभा २०) की प्रवृत्ति सलक्ष्य होती है । बाहुबली एक संवत्सर तक अर्थस्योहा बुद्धिः संज्ञिनः परनिरपेक्षोऽर्थपरिच्छेदः । कायोत्सर्ग प्रतिमा में खड़े रहे । लताओं ने उनके शरीर (दहावृ प १२५) को तथा वल्मीक से निर्गत भुजंगमों ने उनके पैरों को समतीते सत्थत्थभावभासणं बुद्धी । वेष्टित कर डाला । एक संवत्सर पूरा हुआ। भगवान् (दअचू पृ ६७) ने ब्राह्मी और संदरी-दोनों साध्वियों को भेजा। वे जो स्वतंत्ररूप से अर्थ का निर्णय करती है, वह बुद्धि बाहुबली की खोज में आईं। खोज करते-करते बल्लियों है। और तुणों से घिरे हुए तथा शिर और दाढ़ी-मूछ के जो अपनी मति से शास्त्र के अर्थ को प्रकाशित लम्बे और सघन बालों से परिवेष्टित बाहबली को करती है, वह बुद्धि है। देखा । वन्दना कर दोनों साध्वियों ने कहा- क्या हाथी पुणो पुणो अत्थावधारणावधारितं बुज्झतो बुद्धी पर आरूढ़ व्यक्ति कैवल्य प्राप्त कर सकता है ? इतना भवइ । (नन्दीचू पृ ३६) कहकर वे चली गईं। बाहबली ने सोचा-कैसा हाथी ? जो अर्थ की बार-बार अवधारणा करती है, निश्चय कहां है हाथी ? सोचते-सोचते वे गहराई में गए और करती है, वह बुद्धि है। ज्ञात हुआ कि अहंकार के मदोन्मत्त हाथी पर वे आरूढ़ अवधारितमर्थ क्षयोपशमविशेषात् स्थिरतया पुनः हैं । अहं क्यों ? कैसा ? किस पर ? अहंकारशून्य हो पुनः स्पष्टतरमेव बुद्धयमानस्य बुद्धिः । उन्होंने भगवान् के पास जाने तथा भ्राता-मुनियों को (नन्दीहाव पृ ५१) वंदन करने के लिए पैर उठाया । ज्ञानावरणीय कर्म क्षयोपशम की विशेषता तथा स्थिरता के कारण आदि घातिकर्मों का पर्दा उठा और वे केवली हो गए। जिससे जाना हुआ अर्थ पून:-पुनः स्पष्टतर जाना जाता वे भगवान की सन्निधि में गए और केवलियों की पंक्ति है, वह बुद्धि है। में बैठ गए। (देखें-आवचू १ पृ. २०९-२११) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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