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________________ पुद्गल दुप्पभितीण परमाणूणं जो संजोगो सो इतरेतर संजोगो भवति परमाणूणं, पदेसेसु दुपदेसादीण नेयमिति । ( उनि ३५ चू पृ १७) इतरेतर संयोग के दो प्रकार - १. परमाणु संयोग - दो, तीन आदि परमाणुओं का संयोग । २. प्रदेश संयोग - द्विप्रदेशी आदि स्कन्धों का संयोग । इतरेतर प्रदेशसंयोग धम्माइपसाणं पंचह उ जो पएससंजोगो । तिह पुण अणाईओ साईओ होति दुष्हं तु ।। ( उनि ४२ ) धर्म, अधर्म, आकाश, जीव और पुद्गल इन पांचों द्रव्यों का सजातीय स्कंध देश-प्रदेशों के साथ जो संयोग होता है, वह इतरेतर प्रदेशसंयोग है । ४२२ धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय इन तीनों का सजातीय देश-प्रदेशों के साथ जो संयोग होता है, वह अनादि संयोग है । वह संयोग स्वाभाविक और अनादि है । जीवप्रदेशों और पुद्गल प्रदेशों का धर्म, अधर्म और आकाश के प्रदेशों के साथ तथा पुद्गलों के साथ जो संयोग होता है, वह सादि संयोग है । धर्म, अधर्म और आकाश के स्कन्धों के साथ जीवप्रदेशों और पुद्गलप्रदेशों का जो संयोग है, वह अनादि संयोग है । इतरेतर परमाणु संयोग के प्रकार परमाणूणं इतरेतरसंजोगो दुविहो - संठाणतो खंधतो ( उचू पृ. १७) इतरेतर परमाणु संयोग के दो प्रकार संस्थान और स्कन्ध | य । संस्थान और स्कन्ध में अन्तर 'खंधं तं संठाणं अणित्थंत्थं ॥ संस्थानम् - आकारस्तत् संस्था - तस्य स्कन्धस्य नम् । ........ नियतपरिमण्डलाद्यन्यतराकारं संस्थानं शेषोऽनियताकारस्तु स्कन्ध इत्यनयोर्विशेषः । ( उनि ३७ शावृप २७) स्कन्ध का आकार संस्थान कहलाता 1 परमाणु संहति अचित्तमहास्कन्ध अथवा अन्य अनित्थंस्थ- परिमण्डल आदि पांच संस्थानों से अतिरिक्त Jain Education International अनेक प्रकार के स्कन्धों का निर्माण करती है । संस्थान का आकार नियत होता है और स्कन्ध अनियत आकार वाले होते हैं । संस्थान और स्कन्ध में यही अन्तर है । ६. पुद्गल का अवगाहन क्षेत्र अजीव द्रव्यकरण .....लोएगदे से लोए य, भइयव्वा ते उ खेत्तओ ॥ परमाणूनामेकप्रदेश एवावस्थानात् स्कन्धविषयैव भजना द्रष्टव्या ते हि विचित्रत्वात् परिणतेर्बहुतरप्रदेशोपचिता अपि केचिदेकप्रदेशे तिष्ठन्ति । अन्ये तु संख्येयेषु च प्रदेशेषु यावत् सकललोकेऽपि तथाविधाचित्त महास्कन्धवद् भवेयुरिति भजनीया उच्यन्ते । ( ३६ ) ११ शावृ प ६७४) क्षेत्र की अपेक्षा से स्कन्ध लोक के एक देश और समूचे लोक में भाज्य हैं—असंख्य विकल्पयुक्त हैं । परमाणु आकाश के एक प्रदेश में अवगाहन करते हैं, इसलिए भजना अथवा विकल्प केवल स्कंध का ही होता है । स्कन्ध की परिणति नाना प्रकार की होती है। कुछ स्कंध आकाश के एक प्रदेश में भी अवगाहन करते हैं, कुछ आकाश के संख्येय प्रदेशों में अवगाहन करते हैं और कुछ स्कंध पूर्ण लोकाकाश में फैल जाते हैं— जैसे अचित्तमहास्कंध | १०. अजीव द्रव्यकरण अजियप्पओगकरणं दव्वे वण्णाइयाण पंचण्हं । चित्तकर (i) कुसुंभाईसु विभासा उ सेसाणं || ( उनि १९५ ) जं जं निज्जीवाणं कीरइ जीवप्पओगओ तं तं । वन्नाइ रुवकम्माइ वावि तदजीवकरणं ति ॥ ( विभा ३३४२ ) वस्त्र, काष्ठ आदि अजीव द्रव्यों पर जीवप्रयोग के द्वारा कुसुंभ आदि वर्णं चित्रित किये जाते हैं, पुत्तलिका आदि का रूपनिर्माण किया जाता है, द्रव्यकरण है । वह अजीव अजीव भावकरण वण्णरसगंधफासे संठाणे चेव होइ नायव्वं । पंचविहं पंचविहं दुविहऽविहं च पंचविहं || For Private & Personal Use Only ( उनि २०२ ) www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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