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________________ पुद्गल संयोग के प्रकार सादि सान्त हैं । असंखकालमुक्कसं, एवं समयं जहन्निया । अजीवाण य रूवीणं, ठिई एसा वियाहिया | अतकालमुक्कसं, एवं समयं जहन्नयं । अजीवाण य रूवीणं, अन्तरेयं वियाहियं ॥ ( उ ३६।१३,१४) रूपी अजीवों (पुद्गलों) की स्थिति जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः असंख्यात काल की होती है । उनका अन्तर (स्वस्थान से स्खलित होकर वापिस नहीं आने तक का काल ) जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अनन्त काल का होता है । ७. पुद्गल - परमाणु बन्ध की प्रक्रिया द्धिस्स णिद्वेण दुताहिएणं, लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिएणं । frद्धस्स लक्खेण उवेइ बंधो, जहन्नवज्जो विसमो समो वा ॥ एगगुणनिद्धो तिगुणणिद्धेणं बज्झति, तिगुणनिद्धो पंचगुणणिद्वेण, पंचगुणो सत्तगुणणिद्धेण, एवं दुयाहिएण बंधो भवति, तहा दुगुणणिद्धो चउगुणणिद्वेण, चउगुणणिद्धो छगुणणिद्वेण, छगुणणिद्धो अट्ठगुणणिद्वेण, एवं णेयं । लुक्खेवि एवं चेव । णिद्धलुक्खस्स पुण जहन्नगुणवज्जेसु सेसेसु विसमेसु समेसु वा बंधो भवति । एगगुणणिद्धो एगगुणलुक्खेणं ण बज्झति, दुगुणतिगुणठिएसु बज्झति । (उच्च् पृ १७) सेसे सदृश सम्बन्ध - स्निग्ध परमाणुओं का स्निग्ध परमाणुओं के साथ एवं रूक्ष परमाणुओं का रूक्ष परमाणुओं के साथ सम्बन्ध तब होता है, जब स्निग्ध का रूक्ष परमाणुओं में दो गुण या उनसे अधिक गुणों का अन्तर मिले । विसदृश सम्बन्ध - स्निग्ध परमाणुओं का रूक्ष परमाणुओं के साथ जघन्य को छोड़कर सम या विषम संख्या होने पर सम्बन्ध हो जाता है । गुण (अंश) १+१ १+२ १+३ २+३ २÷४ २+५ ३+४ Jain Education International सदृश नहीं नहीं है থক नहीं ४२१ विसदृश नहीं नहीं नहीं থকথেকথে पुद्गल वाले सरसगुणा सरिसगुणं अब्भहियगुणाण हीणगुणमेव । परिणामिउं समत्था न पुण ऊणा तु अहियाणं || जति कालियमेगगुणं सुक्किलयंपि हवेज्ज बहुयगुणं । परिणामिज्जति कालं सुक्त्रेण गुणाहियगुणेणं ॥ जति सुक्कं एगगुणं कालगदव्वंपि एगगुणमेव । कावतं परिणामं तुल्लगुणं जस्स संभवति ।। ( उचू पृ १८ ) बंध - काल में स्निग्ध परमाणु अपने समान गुण रूक्ष परमाणुओं को और रूक्ष परमाणु अपने समान गुण वाले स्निग्ध परमाणुओं को अपने-अपने रूप में परिणत कर लेते हैं। अधिक गुण वाले परमाणु हीन गुण वाले परमाणुओं को अपने रूप में परिणत कर लेते हैं । एक गुण काला परमाणु अधिक गुण वाले शुक्ल परमाणु के योग से शुक्ल हो जाता है। एक गुण काला परमाणु एक गुण शुक्ल परमाणु के योग से कापोत वर्ण में परिणत हो जाता है । ८. पुद्गल संयोग के प्रकार "दुविहो उ दव्वसंजोगो । संजुत्तगसंजोगो नायव्वियरेयरो चेव ॥ ( उनि ३० ) द्रव्य संयोग के दो प्रकार हैं— संयुक्तसंयोग और इतरेतरसंयोग । संयुक्त संयोग एगरस एगवण्णे एगे गंधे तहा दुफासे अ । परमाणू खंधेहि अ दुपए साईहि णायव्वो ।। यदा वा तिक्ततादिपरिणतिमपहाय कटुकत्वादिपरिगति प्रतिपद्यते तदाऽपि वर्णादिभिः संयुक्त एव कटुकत्वादिना संयुज्यते इति संयुक्तसंयोग उच्यते । ( उनि ३३ शावृप २४) एक रस, एक वर्ण, एक गंध और दो अविरुद्ध स्पर्श वाला परमाणु जब द्विप्रदेशी आदि स्कन्धों अथवा अन्य परमाणुओं अथवा अन्य वर्णों के साथ संयुक्त होता है, तब वह संयुक्त संयोग कहलाता है । अथवा वर्ण आदि से संयुक्त परमाणु तिक्तता आदि की परिणति को छोड़ agar आदि से संयुक्त होता है, वह भी संयुक्तसंयोग है । इतरेतर संयोग के प्रकार इयरेयरसंजोगो परमाणूणं तहा पएसाणं । .... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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