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________________ अव पल्योपम के प्रकार - जोयणं आयाम - विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, से णं पल्ले गाहिय - बेयाहिय - तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्मट्ठे सन्निचित्ते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥ से णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमा गच्छेज्जा । तओ णं समए - समए एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं काले से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ । ( अनु ४२२ ) जैसे कोई कोठा एक योजन लम्बा, चौड़ा, ऊंचा और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला है वह एक, दो, तीन यावत् उत्कृष्टतः सात रात के बढ़े हुए करोड़ों बालानों से ठूंस-ठूंसकर, घनीभूत कर भरा हुआ है । वे बाला न अग्नि से जलते हैं, न हवा से उड़ते हैं, न असार होते हैं, न विश्वस्त होते हैं और न दुर्गन्ध को प्राप्त होते हैं । उस कोठे से प्रत्येक समय में एक-एक बालाग्र को निकालने से जितने समय में वह कोठा खाली, रज रहित, निर्लेप और निष्ठित (अन्तिम रूप से खाली ) होता है, वह व्यावहारिक उद्धार पल्योपम है । दृष्टांत सूक्ष्म उद्धार पत्योपम सुमे उद्धारपलिओ मे से जहानामए पल्ले सिया - atri आयाम - विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढ उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, से णं पल्ले -- गाहिय - बेया हि याहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्मट्ठे सन्निचित्ते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥ तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असखेज्जाई खंडाई कज्जइ । ते णं वालग्गा दिट्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पण जीवस्स सरीरोगाहणाओ असखेज्जगुणा । ते णं वालग्गे तो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा । तओ णं समए - समए एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ । से तं सुहुमे उद्धारपलिओवमे । ( अनु ४२४) जैसे कोई कोठा एक योजन लम्बा, चौड़ा, ऊंचा और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला है। वह एक, दो, तीन दिन यावत् उत्कृष्टतः सात रात के बढ़े हुए करोड़ों बालाग्रों से ठूंस-ठूंसकर घनीभूत कर भरा हुआ है । Jain Education International पल्योपम इन बालों में से प्रत्येक बालाग्र के असंख्य खण्ड किए जाते हैं । वे बालाग्र दृष्टि विषय में आने वाले पुद्गलों की अवगाहना के असंख्येय भागमात्र और सूक्ष्म पनक जीव के शरीर की अवगाहना से असंख्य गुण अधिक हैं । वे बालाग्र न अग्नि से जलते हैं, न हवा से उड़ते हैं, न असार होते हैं, न विध्वस्त होते हैं और न दुर्गन्ध को प्राप्त होते हैं। ४१५ उस कोठे से प्रत्येक समय में एक-एक बालाग्र को निकालने से जितने समय में वह कोठा खाली, रजरहित, निर्लेप और निष्ठित ( अन्तिम रूप से खाली ) होता है, वह सूक्ष्म उद्धार पल्योपम है । उद्धार पत्योपम - सागरोपम का प्रयोजन एएसि वावहारिय-उद्धारपलिओम - सागरोवमेहि after faarai, केवलं पण्णवणट्ठे पण्णविज्जति । ( अनु ४२३ ) इन व्यावहारिक उद्धार पत्योपमों और सागरोपमों का कोई प्रयोजन नहीं है, केवल प्रज्ञापना के लिए प्रज्ञापन किया जाता है । दाणं उद्धारो घेप्पइ । एहि हुमउद्धारपओिवम-सागरोवमेहिं दीवसमु( अनु ४२५) इन सूक्ष्म उद्धार पल्योपमों और सागरोपमों से द्वीपसमुद्रों का उद्धार (परिमाण) किया जाता है । ४. अध्व पल्योपम के प्रकार अद्धापलिओ दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -सुहुमे य वावहारिए । ( अनु ४२७) अध्व पत्योपम के दो प्रकार हैं-सूक्ष्म और व्यावहारिक दृष्टांत व्यावहारिक अध्व पल्योपम तत्थ णं जेसे वावहारिए से जहानामए पल्ले सिया - जोयणं आयाम - विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, से णं पल्ले एगा हिय - बेयाहिय तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्मट्ठे सन्निचित्ते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥ से णं बालग्गे नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलि विद्धं सेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा । तओ णं वाससए - वाससए गते एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ । ( अनु ४२९ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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