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________________ क्षेत्र पल्योपम के प्रकार ४१६ पल्योपम __जैसे कोई कोठा एक योजन लम्बा, चौड़ा, ऊंचा (अन्तिम रूप से खाली) होता है, वह सूक्ष्म अध्व पल्योपम और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला है, वह एक, दो, है। तीन दिन यावत् उत्कृष्टतः सात रात के बढ़े हुए करोड़ों अध्व पल्योपम-सागरोपम का प्रयोजन बालानों से हूंस-ठूसकर घनीभूत कर भरा हुआ है। वे एएहिं वावहारिय-अद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि बालाग्र न अग्नि में जलते हैं, न हवा से उड़ते हैं, न असार किचिप्पओयणं केवलं पण्णवणटपण्णविज्जति । होते हैं. न विध्वस्त होते हैं और न दुर्गन्ध को प्राप्त होते (अनु ४३०) हैं। उस कोठे से सौ-सौ वर्ष में एक-एक बालान को इन व्यावहारिक अध्व पल्योपमों और सागरोपमों निकालने से जितने समय में वह कोठा खाली, रज- का कोई प्रयोजन नहीं है, केवल प्ररूपणा के लिए प्ररूपण रहित, निर्लेप और निष्ठित (अन्तिम रूप से खाली) किया जाता है। होता है, वह व्यावहारिक अध्व पल्योपम है। एएहिं सुहमअद्धापलिओवम सागरोवमेहिं नेरइयदृष्टांत-सूक्ष्म अध्व पल्योपम तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवाणं आउयाई मविज्जंति । सुहमे अद्धापलिओवमे-से जहानामए पल्ले सिया - (अनु ४३२) जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उडढं उच्चत्तेणं, तं इन सूक्ष्म अध्व पल्योपमों और सागरोपमों में नैरतिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, से णं पल्ले - यिक, तिर्यग्योनिक, मनुष्य और देवों का आयुष्य नापा एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । जाता है। सम्मठे सन्निचित्ते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥ ५. क्षेत्र पल्योपम के प्रकार तत्थ णं एगमेगे बालग्गे असंखेज्जाइं खंडाई कज्जइ, खेत्तपलिओवमे विहे पण्णत्ते, तं जहा-सहमे य ते णं वालग्गे दिट्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइ-भागमेत्ता बावटाशिा य (अनु ४३४) हमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा । क्षेत्र पल्योपम के दो प्रकार हैं—सूक्ष्म और व्यावसे णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो द्वारिक। कच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छे- दष्टांत-व्यावहारिक क्षेत्र पल्योपम ज्जा। तओ णं वाससए-वाससए गते एगमेगं वालग्गं से जहानामए पल्ले सिया-जोयणं आयाम-विक्खंअवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे भेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेनिट्ठिए भवइ । (अनु ४३१) वेणं, से ण पल्लेजैसे कोई कोठा एक योजन लम्बा, चौड़ा, ऊंचा एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला है, वह एक, दो, सम्मठे सन्निचित्ते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥ तीन यावत् उत्कृष्टतः सात रात के बढ़े हुए करोड़ों से णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा बालानों से लूंस-ठूसकर घनीभूत कर भरा हुआ है। नो कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धसेज्जा, नो पूइत्तार हव्वमाग इन बालानों में से प्रत्येक बालाग्र के असंख्य खण्ड च्छेज्जा। जे णं तस्स आगासपएसा तेहिं वालग्गेहिं किए जाते हैं। वे बालाग्र दृष्टि विषय में आने वाले पुद्गलों अप्फन्ना, तओ णं समए-समए एगमेगं आगासपएसं की अवगाहना के असंख्येय भागमात्र और सूक्ष्म पनक अवहाय जावइएण कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे जीव के शरीर की अवगाहना में असंख्य गुना अधिक निट्रिए भवइ । (अनु ४३६) होते हैं। वे बालान न अग्नि में जलते हैं, न हवा से उड़ते जैसे कोई कोठा एक योजन लम्बा, चौड़ा, ऊंचा हैं, न असार होते हैं और न विध्वस्त होते हैं और न और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला है, वह एक, दो, दुर्गन्ध को प्राप्त होते हैं। उस कोठे से सौ-सौ वर्ष के तीन यावत् उत्कृष्टत: सात रात के बढ़े हुए करोड़ों बीत जाने पर एक-एक बालाग्र निकालने से जितने समय बालानों से लूंस-ठूसकर घनीभूत कर भरा हुआ है। में वह कोठा खाली, रजरहित, निर्लेप और निष्ठित ये बालाग्र न अग्नि से जलते हैं, न हवा से उड़ते हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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