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________________ पल्योपम ४१४ उद्धार पल्योपम के प्रकार वाले हैं, वे जब तक इनका निर्माण नहीं कर लेते, ० दृष्टान्त तब तक करण अपर्याप्त कहलाते हैं। • अध्व पल्योपम-सागरोपम का प्रयोजन ६. पर्याप्ति-निर्माण का कालमान ५. क्षेत्र पल्योपम के प्रकार उत्पत्तिप्रथमसमय एव चैता यथायथं सर्वा अपि ० दृष्टान्त क्षेत्र पल्योपम-सागरोपम का प्रयोजन युगपन्निष्पादयितुमारभ्यन्ते क्रमेण च निष्ठामुपयान्ति ।" ६. सागरोपम का परिमाण आहारपर्याप्तिश्च प्रथमसमय एव निष्पद्यते, शेषास्तु प्रत्येकमन्तर्मुहूर्तेन कालेन। (नन्दीमवृ प १०५) ७. पालि-महापालि *पल्योपम-सागरोपम : काल के भेव (द्र. काल) जन्म के प्रथम समय में ही इन छहों पर्याप्तियों का - प्रारम्भ एक साथ होता है और पूर्णता क्रमिक रूप से १. पल्योपम-सागरोपम की परिभाषा होती है। आहारपर्याप्ति प्रथम समय में ही निष्पन्न हो जं कालप्पमाणं ण सक्का घेत्तं तं उवमियं भवति । जाती है। शेष पर्याप्तियों को पूर्ण होने में एक-एक धण्णपल्ल इव तेण उवमा जस्स तं पल्लोवमं भण्णति । अन्तर्मुहर्त लगता है। सागरो इव जं महाप्रमाणं तं सागरोवमं । (अनुच पृ ५७) आहारपर्याप्त्या अपर्याप्तो विग्रहगतावेवोपपद्यते, जिस काल का प्रमाण संख्या से नहीं जाना जा नोपपातक्षेत्रमागतोऽपि, उपपातक्षेत्रमागतस्य प्रथमसमय सकता, वह उपमा से जाना जाता है। धान्यपल्य से एवाहारकत्वात्, तत एकसामयिकी आहारपर्याप्ति- उपमित काल पल्योपम कहलाता है। सागर की तरह निर्वत्तिः। (नन्दीमवृ प १०५) महाप्रमाण वाला काल सागरोपम कहलाता है। विग्रहगति में ही जीव आहारपर्याप्ति से अपर्याप्त होता है, उत्पत्तिक्षेत्र में नहीं। जीव उत्पत्तिक्षेत्र में आते पलिओवमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा -उद्धारपलिही प्रथम समय में आहारक हो जाता है, अतः आहार ओवमे अद्धापलिओवमे खेतपलिओवमे य। (अनु ४१९) पर्याप्ति-निर्माण का कालमान एक समय है। पल्योपम के तीन प्रकार७. किस जीव में कितनी पर्याप्तियां ? उद्धारपल्योपम-जिस कालखण्ड में बालाग्र अथवा एगिदियाणं चउरो, विलिदियाणं पंच, अस्सण्णीणं बालखण्ड का उद्धार किया जाता है, उसकी संज्ञा उद्धारसंववहारतो पंच चेव, सण्णीणं च छ। (नन्दीचू पृ २२) पल्योपम है। पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय जीवों में प्रथम चार, विकले- अद्धापल्योपम-अद्धा कालवाचक शब्द है। इस न्द्रिय (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय) जीवों में प्रथम कालखण्ड में सौ वर्ष से बालाग्र अथवा बालखण्ड का पांच, असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में संव्यवहार की अपेक्षा से उद्धार किया जाता है। इसलिए इसकी संज्ञा अद्धा प्रथम पांच तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में छहों पर्याप्तियां पल्योपम है। होती हैं। क्षेत्रपल्योपम-जो कालखण्ड आकाश प्रदेशों के पल्योपम-पल्य की उपमा से उपमित काल। अवहार से मापा जाता है, उसकी संज्ञा क्षेत्रपल्योपम है । पल्य और सागर-ये दो उपमान हैं। ३. उद्धार पल्योपम के प्रकार १. पल्योपम-सागरोपम की परिभाषा उद्धारपलिओवमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुहुमे य २. पल्योपम के प्रकार वावहारिए य । (अनु ४२०) ३. उद्धार पल्योपम के प्रकार उद्धार पल्योपम के दो प्रकार हैं-सूक्ष्म और ० दृष्टान्त व्यावहारिक । ० उद्धार पल्योपम-सागरोपम का प्रयोजन दृष्टांत-व्यावहारिक उद्धार पल्योपम ४. अध्व पल्योपम के प्रकार तत्थ णं जे से वावहारिए, से जहानामए पल्ले सिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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