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________________ नरक ३८२ परमाधार्मिकदेवकृत वेदना प्यास से पीड़ित होकर मैं दौड़ता हआ वैतरणी नदी शब्द करता हुआ तांबा, लोहा, रांगा, और सीसा पिलाया पर पहंचा । जल पीऊंगा-यह सोच रहा था, इतने में गया। छुरे की धार से मैं चीरा गया। ___तुझे खण्ड किया हुआ और शूल में खोंस कर गर्मी से संतप्त होकर असिपत्र महावन में गया । पकाया हआ मांस प्रिय था-यह याद दिलाकर मेरे वहां गिरते हए तलवार के समान तीखे पत्तों से अनेक शरीर का मांस काट अग्नि जैसा लाल कर मुझे खिलाया बार छेदा गया हूं। गया। मुदगरों, मुसुण्डियों, शूलों और मुसलों से त्राणहीन तुझे सूरा, सीध, मैरेय और मधु-ये मदिराएं प्रिय दशा में मेरा शरीर चूर-चूर किया गया-इस प्रकार मैं थीं-यह याद दिलाकर मुझे जलती हुई चर्बी और रुधिर अनंत बार दुःख को प्राप्त हुआ हूं। पिलाया गया। तेज धार वाले छरों, छरियों और कैंचियों से ७. परमाधामिकदेवकृत वेदना मैं अनेक बार खंड-खंड किया गया, दो टूक किया परमाश्च तेऽधामिकाश्च संक्लिष्टपरिणामत्वात्परमागया और छेदा गया हं तथा मेरी चमड़ी उतारी गई धार्मिकाः । अंबे अंबरिसी चेव, सामे अ सबले इय । पाशों और कूटजालों द्वारा मृग की भांति परवश रुद्दोवरुद्दकाले य, महाकालेत्ति आवरे ॥ बना हुआ मैं अनेक बार ठगा गया, बांधा गया, रोका असिपत्ते धणुकुंभे, वालू वेयरणी इय । गया और मारा गया हूं। खरस्सरे महाघोसे, एए पन्नरसाहिया ॥ मछली को फंसाने की कंटियों और मगरों को (आवहाव २ पृ १०७) पकड़ने के जालों द्वारा मत्स्य की तरह परवश बना परमाधार्मिक देवों के परिणाम अत्यंत संक्लिष्ट होते दुआ मैं अनन्त बार खींचा, फाड़ा, पकड़ा और मारा हैं। उनके पटट : हैं। उनके पन्द्रह प्रकार और भिन्न-भिन्न कार्य हैंगया हूं। १. अंब-हनन करना, ऊपर से नीचे गिराना, बाज पक्षियों, जालों और वज्रलेपों के द्वारा पक्षी बींधना आदि। की भांति मैं अनन्त बार पकड़ा, चिपकाया, बांधा और २. अंबर्षि -काटना आदि-आदि । मारा गया हूं। ३. श्याम -फेंकना, पटकना, बींधना आदि-आदि । बढ़ई के द्वारा वृक्ष की भांति कूल्हाड़ी और फरसा ४. शबल -आंतें, फेफड़े कलेजा आदि निकालना । आदि के द्वारा मैं अनन्त बार कूटा, दो टूक किया, ५. रुद्र-तलवार, भाला आदि से मारना, शूली में छेदा और छीला गया हूं। पिरोना आदि-आदि। ____ लोहार के द्वारा लोहे की भांति चपत और मुट्ठी ६. उपरुद्र--अंग-उपांगों को काटना । आदि के द्वारा मैं अनन्त बार पीटा, कूटा, भेदा और . ७. काल-विविध पात्रों में पचाना । चूरा किया गया हूं। ८. महाकाल-शरीर के विविध स्थानों से मांस निकालना। भूख-प्यास संबंधी वेदना ९. असिपत्र-हाथ, पैर आदि को काटना । तत्ताइं तम्बलोहाई, तउयाइं सीसयाणि य । १०. धनु-कर्ण, ओष्ठ, दांत को काटना । पाइओ कलकलंताई, आरसंतो सुभेरवं ।। ११. कुम्भ-विविध कुम्भियों में पचाना । तुहं पियाई मंसाई, खंडाइं सोल्लगाणि य । १२. बालुक-भंजना आदि-आदि । खाविओ मि समसाइं, अग्गिवण्णाई णेगसो॥ १३. वैतरणि-वसा, लोही आदि की नदी में तुहं पिया सुरा सीहू, मेरओ य महूणि य । डालना। पाइओ मि जलंतीओ, वसाओ हिराणि य ।। १४. खरस्वर-करवत, परशु आदि से काटना। (उ १९।६८-७०) १५. महाघोष-भयभीत होकर दौडने वाले नैरयिकों भयंकर आक्रन्द करते हुए मुझे गर्म और कलकल का अवरोध करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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