SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 426
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शस्त्रसम्बन्धी वेदना शीत और उष्ण वेदना जहा इहं अगणी उण्हो, नरएसु वेयणा उण्हा, जहा इमं इहं सीयं नरएसु वेयणा सीया, एत्तोऽणंतगुणे तहि । अस्साया वेइया मए ॥ एत्तोऽणंतगुणं तहिं । अस्साया वेइया मए ॥ ( उ १९।४७, ४८ ) जैसे यहां अग्नि उष्ण है, इससे अनन्त गुना अधिक दुःखमय उष्ण वेदना वहां नरक में है । जैसे यहां यह शीत है, इससे अनंत गुना अधिक दुःखमय शीत वेदना वहां नरक में है । अग्नि आदि संबंधी वेदना कंदतो कंदुकुम्भीसु, उड्ढपाओ अहोसिरो । हुयासणे जलतम्मि, पक्कपुव्वो अनंतसो ॥ महादवग्गिसंकासे, मरुम्मि वइरवाए । कलम्बबालुयाए य, दढपुव्वो अनंतसो ॥ संतो कंदुकुम्भी, उड्ढं बद्धो अबंधवो । करवत्तकरकयाईहि, छिन्नपुव्वो अनंतसो ॥ अइतिक्खकण्टगाइणे, तुंगे सिम्बलिपायवे । खेवियं पासबद्धेणं, कड्ढोकड्ढाहिं दुक्करं || महाजन्तेसु उच्छू वा, आरसंतो सुभेरवं । पीलिओ मि सम्मेहि, पावकम्मो अनंतसो ॥ ( उ १९१४९-५३) पकाने के पात्र में, जलती हुई अग्नि में पैरों को ऊंचा और सिर को नीचा कर आक्रन्दन करता हुआ मैं अनन्त बार पकाया गया हूं । महादवाग्नि तथा मरु देश और वज्रबालुका जैसी कदम्ब नदी की बाल में मैं अनंत बार जलाया गया हूं । ३८१ मैं पाकपात्र में त्राणरहित होकर आॠन्द करता हुआ ऊंचा बांधा गया तथा करवत और आरा आदि के द्वारा अनन्त बार छेदा गया हूं । अत्यन्त तीखे कांटों वाले ऊंचे शाल्मलि वृक्ष पर पाश से बांध, इधर-उधर खींचकर असह्य वेदना से मैं खिन्न किया गया हूं । पापकर्मा मैं अति भयंकर आक्रन्द ही कर्मों द्वारा महायन्त्रों में ऊख की पेरा गया हूं । Jain Education International करता हुआ अपने भांति अनन्त बार नरक पशु-पक्षी संबंधी वेदना कूवंतो कोलसुणएहि, सामेहि सबलेहि य । पाडिओ फालिओ छिन्नो, विप्फुरंतो अणेगसो ॥ अवसो लोहरहे जुत्तो, जलते समिलाजुए । चोइओ तोत्तजुत्तेहि, रोज्झो वा जह पाडिओ || बला संडासतुंडेहि लोहतुंडेहिं पक्खिहि । विलुत्तो विलवंतो हं, ढंक गिद्धेहिणंतसो ॥ ( उ १९।५४,५६,५८) मैं इधर-उधर जाता और आनन्द करता हुआ काले और चितकबरे सूअर एवं कुत्तों के द्वारा अनेक बार गिराया, फाड़ा और काटा गया हूं । युगकीलक ( जूए के छेदों में डाली जाने वाली लकड़ी की कीलों से युक्त जलते हुए लोह रथ में परवश बनाया गया मैं जोता गया, चाबुक और रस्सी के द्वारा हांका गया तथा रोझ की भांति भूमि पर गिराया गया हूं। संडासी जैसी चोंच वाले और लोहे जैसी कठोर चोंच वाले ढंक और गीध पक्षियों के द्वारा विलाप करता हुआ मैं बलपूर्वक अनंत बार नोचा गया हूं । शस्त्रसंबंधी वेदना तन्हा किलंतो धावंतो पत्तो वेयरणि नदि । जलं पाहिं ति चिततो खुरधाराहि विवाइओ || उहाभितत्तो संपत्तो असिपत्तं महावणं । असिपत्ते हि पडतेहि छिन्नपुव्वो अणेगसो ॥ मुग्गरेहिं मुसंढीहि सुलेहि मुसलेहि य । गयासं भग्गगत्तेहिं पत्तं दुक्खं अनंतसो ॥ खुरेहिं तिक्खधारेहिं छुरियाहिं कप्पणीहि य । कप्पिओ फालिओ छिन्नो उक्कत्तो य अणेगसो ॥ पाहि कूडजाहि मिओ वा अवसो अहं । बाहिओ बद्धरुद्धो अ बहुसो चेव विवाइओ ॥ गलेहिं मगरजाहिं मच्छो वा अवसो अहं । उलिओ फालिओ गहिओ मारिओ य अनंतसो ॥ वीदंसहि जाहिं लेप्पाहि सउणो विव । गहिओ लग्गो बद्धो य मारिओ य अनंतसो ॥ कुहाड फरमाईहि वड्ढईहि दुमो विव । कुट्टिओ फालिओ छिनो तच्छिओ य अनंतसो ॥ चवेड मुट्ठिमाईहि कम्मारेहि अयं पिव । ताडिओ कुट्टियो भिन्नो चुण्णिओ य अनंतसो | ( उ १९५९-६७) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy