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________________ द्रव्य ३५१ सामान्य-विशेष ५. सामान्य-विशेष धम्मो अहम्मो आगासं, दव्वं इक्किक्कमाहियं । ६. द्रव्य परिणामीनित्य अणंताणि य दवाणि, कालो पुग्गलजंतवो ।। ७. उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य (उ २८1८) ८. गुरु और लघु द्रव्य धर्म, अधम, आकाश--ये तीन द्रव्य एक-एक हैं। काल, पुद्गल और जीव-ये तीन द्रव्य अनन्त-अनन्त ९. अगुरुलघु पर्याय १०. द्रव्य-पर्याय की सूक्ष्मता ४. पर्याय के लक्षण १. द्रव्य के निर्वचन एगत्तं च पुहत्तं च, संखा संठाणमेव य । दवए दुयए दोरवयवो विगारो गुणाण संदावो । संजोगा य विभागा य, पज्जवाणं तु लक्खणं ॥ दव्वं भव्वं भावस्स भूअभावं च जं जोग्गं ।। (उ २८।१३) (विभा २८) एकत्व-प्रत्येक स्कन्ध के परमाणु भिन्न-भिन्न होते हैं. द्रव्य वह है फिर भी उनके संघात में एकत्व की अनुभूति ० जो अपने पर्यायों को प्राप्त होता है और उनसे होती है। मुक्त होता है। पृथक्त्व-यह इससे पृथक् है-इस अनुभूति का हेतुभूत पर्याय। • जो अपने पर्यायों द्वारा गृहीत होता है और परित्यक्त (मुक्त) होता है। संख्या-एक, दो, तीन आदि की प्रतीति का हेतभूत ० जो सत्ता का अवयव अथवा विकार है। (अवा - पर्याय। संस्थान-आकार-विशेष में संस्थित होना। यह न्तर सत्तात्मक द्रव्य महासत्ता के अवयव अथवा विकार होते हैं।) यह दीर्घ है-इस बुद्धि का हेतुभूत पर्याय । • जो रूप आदि गुणों का समुदाय है। संयोग-दो वस्तुओं का संयोग । ० जिसमें भूतकालीन और भविष्यकालीन पर्यायों विभाग -यह इससे विभक्त है-इस बुद्धि का हेतुभूत की योग्यता है। पर्याय । २. द्रव्य-गुण-पर्याय ५. सामान्य-विशेष सामण्ण-विसेसमओ तेण पयत्थो विवक्खया जूत्तो। गुणाणमासओ दव्वं एगदव्वस्सिया गुणा । वत्थस्स विस्सरूवो पज्जायावेक्खया सव्वो॥ लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे ।। (विभा १६०३) (उ २८१६) प्रत्येक पदार्थ में सामान्य और विशेष दोनों होते हैं। जो गुणों का आश्रय होता है, वह द्रव्य है। जो एक पर्याय की अपेक्षा पदार्थ के विविध रूप हैं। (केवल) द्रव्य के आश्रित रहते हैं. वे गुण होते हैं। द्रव्य । ""वत्थूणं चिय जो सरिसो पज्जवो स सामन्नं । और गुण-दोनों के आश्रित रहना पर्याय का लक्षण जो विसरिसो विसेसो ............॥ (विभा २२०२) ३. द्रव्य के प्रकार वस्तु के सदृश पर्याय को सामान्य और विसदृश धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पूग्गलजंतवो ।.... पर्याय को विशेष कहते हैं। (उ २८७) सव्वं चिय सव्वमयं स-परपज्जायओ जओ निययं । द्रव्य के छह प्रकार हैं -- सव्वमसव्वमयं पि य विवित्तरूवं विवक्खाओ। १. धर्मास्तिकाय ४. काल (विभा १६०२) २. अधर्मास्तिकाय ५. पुद्गलास्तिकाय सर्व पदार्थ सर्वात्मक है, स्व और पर पर्याय अर्थात ३. आकाशास्तिकाय ६. जीवास्तिकाय सामान्य की अपेक्षा से। सर्व सर्वात्मक नहीं हैं, पृथक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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