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________________ द्रव्य पर्याय अर्थात् विशेष की अपेक्षा से । ६. द्रव्य परिणामी नित्य आविभाव- तिरोभावमेत्तपरिणामि दव्वमेवेयं । निच्चं बहुरूवं पिय नडोव्व वेसंतरावन्नो || ( विभा २६६६ ) नाना प्रकार के वेष धारण करने वाले नट के बहुरूपों की तरह आविर्भाव और तिरोभाव होने पर भी द्रव्य अपने स्वरूप को नहीं छोड़ता है, इसलिए द्रव्य परिणामी नित्य है । जं जं जे जे भावे परिणमइ पओग-वीस सादव्वं । तं तह जाणाइ जिणो अपज्जवे जाणणा नत्थि ॥ ( विभा २६६७ ) प्रयोग और स्वभाव से जो-जो द्रव्य जिस-जिस भाव में परिणत होता है, केवली उसे उसी रूप में जानते हैं । पर्याय रहित द्रव्य को नहीं जाना जा सकता । ७. उत्पाद-व्यय-धौव्य नाणुपपन्नं लक्खिज्जए जओ वत्थु लक्खणं तेणं । उपाओ संभव तह चैव विगच्छओ विगमो || लक्खिज्जइ जं विगयं विगमेण विणा व जं न संभूई । विगमो विलक्खणमओ विगच्छओ वत्थुणोऽणणो ॥ (विभा २१६४, २१६५) अनुत्पन्न वस्तु का बोध नहीं होता और विगम (व्यय) के बिना उत्पाद नहीं होता । उत्पाद और व्यय से वस्तु लक्षित होती है, अतः उत्पाद और व्यय वस्तु के लक्षण हैं, उससे अभिन्न हैं । सव्वं चिय पइसमयं उप्पज्जइ नासए य निच्चं च । ... ( विभा ५४४ ) सभी वस्तुएं प्रतिक्षण उत्पन्न होती हैं, नष्ट होती हैं और नित्य हैं । अव सहावो धम्मो वत्थुस्स, न सो वि सरिसओ निच्चं । उपाय - भंगा चित्ता जं वत्थुपज्जाया ।। ( विभा १७९२ ) समान नहीं रहता । वस्तु का स्वभाव निरन्तर एक वस्तु के पर्याय विचित्र । वे तीन हैं—उत्पाद, धोव्य और विनाश । उत्पाद और व्यय युगपत् ३५२ नाणसावरणस्स य समयं उपायव्वयधम्मा तम्हा पगासतमसो व्व । तह नेया सव्वभावाणं ॥ ( विभा १३४० ) Jain Education International उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य अंधकार के निवर्तन और प्रकाश के उद्भव की तरह केवलज्ञानावरण का क्षय और कैवल्य की उत्पत्ति युगपत् होती है । इसी प्रकार सब पदार्थों में उत्पाद और व्यय युगपत् होते हैं । उत्पज्जेति वयंति य परिणमंति य गुणा न दव्वाइं । दव्वtपभवाय गुणा ण गुणप्पभवाइं दव्वाई || ( आवनि ७९३ ) उत्पाद और व्यय के रूप में परिणमन गुण का होता है, द्रव्य का नहीं । द्रव्य से गुण की उत्पत्ति होती है, गुण 'से द्रव्य की उत्पत्ति नहीं होती । मातृकापद ते हि तीर्थ विधौ सर्वे, मातृकाख्यं उत्पत्तिविगम धौव्यख्यापकं उत्पत्तिविगमावत्र, मतं द्रव्यार्थिकस्य तु धीव्यं पदत्रयम् । सम्प्रचक्षते || पर्यायवादिनः । मातृकाख्यपदत्रये ॥ ( उशावृप २१ ) अर्हत् तीर्थ में तीन मातृकापद हैं— उत्पाद, व्यय और धौव्य | पर्यायवादी को उत्पाद और व्यय तथा द्रव्यवादी को धोव्य मान्य 1 दव्वधम्मो ताव दव्वपज्जवा । एते धम्मा तस्स जीवदव्वस्स अजीवदव्वस्स, उप्पायठिईभंगा पज्जाया भवंति । तत्थ जीवदव्वस्स ताव इमे उप्पायठितिभंगा, जह मणुभावेण उप्पण्णस्स मणुस्सस्स मणूसत्ते उप्पायो भवंति, जाओ पुण गतितो उव्वट्टिऊण आगओ ताए गतीए विगमो, जीवत्तणेण पुण अवट्ठिओ चेव । अजीवस्स उप्पायठिईभंगा 'जहा परमाणुस्स परमाणुभावेण विगयस्स परमाणुत्तणेण विगमे दुप्पदेसियतेण उपाओ अजीवदव्वत्तणंण अवट्ठिओ चेव । तहा सुवण्णदव्वस्स अंगुलेज्जगत्तणेण विगमो कुंडलत्तणेण उप्पाओ सुवण्णदव्वत्ते अवट्ठियं चेव" ****** I ( दजिचू पृ १६ ) द्रव्य का धर्म है - द्रव्य के पर्याय । उत्पाद, स्थिति और व्यय - ये पर्याय जीव और अजीव -- दोनों द्रव्यों के होते हैं । जैसे- एक देव मनुष्य जन्म लेता है तो उसके देवरूप का विनाश और मनुष्यरूप का उत्पाद होता है तथा उसका जीवत्व अवस्थित रहता है। इसी प्रकार अजीव द्रव्य में भी यह त्रिपदी घटित होती है । एक परमाणु का विनाश होने पर द्विप्रदेशी स्कंध आि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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