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________________ दुःख अनुप्रेक्षा अनुभव में तारतम्य रहता है । वह बिना हेतु के नहीं हो सकता, वह हेतु है कर्म । जैसे घट का हेतु मिट्टी है । दुःखमुक्ति के उपाय आयावयाही चय सोउमल्लं कामे काही कमियं खु दुक्खं । छिन्दाहि दोसं विणएज्ज रागं एवं सुही होहिसि संपराए ॥ दुःखमुक्ति के चार उपायश्रमनिष्ठा सुकुमारता का विसर्जन • विषयवासना का अतिक्रमण ० राग-भाव और द्वेषभाव का अपनयन दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो मोहो हम जस्स न होइ तन्हा । तन्हा हया जस्स न होइ लोहो लोहो हओ जस्स न किंचणाई ॥ ( उ ३२८) जिसके मोह नहीं है, उसने दु:ख का नाश कर ० दिया । जिसके तृष्णा नहीं है, उसने मोह का नाश कर दिया । जिसके लोभ नहीं है, उसने तृष्णा का नाश कर दिया । जिसके पास कुछ नहीं है, उसने लोभ का नाश कर दिया । दुःख अनुप्रेक्षा (द २५) इस तानेरइयस्स जंतुणो getaणीयस्स किलेसवत्तिणो । पलिओवमं भिज्जइ सागरोवमं किमंग पुण मज्झ इमं मणोदुहं ॥ न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सई न चे सरीरेण इमेणवेस्सई असासया भोगपिवास जंतुणो । Jain Education International अविस्सई जीवियपज्जवेण मे ॥ ( दचूला १ / १५, १६ ) दुःख से युक्त और क्लेशमय जीवन बिताने वाले इन ३३७ दृष्टिवाद नारकीय जीवों की पल्योपम और सागरोपम आयु भी समाप्त हो जाती है तो फिर यह मेरा मनोदुःख कितने काल का है ? यह मेरा दुःख चिर काल तक नहीं रहेगा । जीवों की भोगपिपासा अशाश्वत है । यदि वह इस शरीर के होते हुए न मिटी तो मेरे जीवन की समाप्ति के समय तो अवश्य मिट ही जाएगी । जम्म दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा य मरणाणि य । अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसंति जंतवो ॥ ( उ १९/१५) जन्म दुःख है, बुढ़ापा दुःख है, रोग दु:ख है और मृत्यु दुःख है । अहो ! संसार दुःख ही है, जिसमें जीव क्लेश पा रहा है । नातः परतरं मन्ये, जगतो दुःखकारणम् । यथाऽज्ञानमहारोगं, सर्व रोगप्रणायकम् ॥ ( उचू पृ १४८ ) अज्ञान महारोग है, सब रोगों का नायक है । इससे बढ़कर संसार में दुःख का कारण अन्य नहीं है । दृष्टिवाद - बारहवां अंग । सब नयदृष्टियों से निरूपण करने वाला आगम । १. दृष्टिवाद का निर्वचन २. दृष्टिवाद का स्वरूप ३. दृष्टिवाद के प्रकार ४. परिकर्म की परिभाषा ० प्रकार ० ० O ० • उपसम्पादनश्रेणिका परिकर्म विप्राणश्रेणिका परिकर्म syntayaश्रेणिका परिकर्म ० परिकर्म : नय और प्रम्प्रदाय ० परिकर्म के मूल उत्तर भेद सिद्धश्रेणिका परिकर्म मनुष्यश्रेणिका परिकर्म स्पृष्टश्रेणिका परिकर्म अवगाढश्रेणिका परिकर्म o ० ५. सूत्र के निर्वाचन परिभाषा 0 एकार्थक O For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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