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________________ दृष्टिवाद ० प्रकार ० गुण दोष सूत्र और नयवृष्टि छिन्नछेदनय ० अच्छिन्नछेदनय * पूर्वगत ६. अनुयोग के प्रकार मूलप्रथमानुयोग कंडिकानुयोग ० • चित्रान्तरकंडिका का प्रतिपाद्य ० ० ० ० * चूला ७. दृष्टिवाद के अन * दृष्टिवाद : गमिकत * दृष्टिवाद की निरूपण शैली दृष्टिवाद बारहवां अंग वृष्टिवाद और ध्यान * * (द्र. श्रुतज्ञान) ( द्र. आगम ) ( द्र. अंगप्रविष्ट) (द्र ध्यान ) १. दृष्टिवाद का निर्वचन दृष्टिर्दर्शनम्, वदनं वाद: । दृष्टीनां वादो दृष्टिवादः । तत्र वा दृष्टीनां पातः दृष्टिपातः । सभेदभिण्णाओ सव्वतदिट्टीओ तत्थ वदंति पतंति व त्ति अतो दिट्टि - बातो । ( नन्दीचू पृ७१) जिस शास्त्र में सभी दृष्टियों / दर्शनों का विमर्श किया जाता है, वह दृष्टिवाद ( दृष्टिपात ) कहलाता है । अथवा जिस शास्त्र में सभी नयदृष्टियों से वस्तुसत्य का विचार किया जाता है, वह दृष्टिवाद कहलाता है । Jain Education International दिट्टिवा सुपरिमाणसंखा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा -- पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा (प्र. पूर्व) पायसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अणुओगदारसंखा पाहुडसंखा पाहुडियासंखा पाहुडपाहुडियासंखा वत्थुसंखा । ( अनु ५७२ ) दृष्टिवादश्रुतपरिमाण संख्या के अनेक प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- पर्यवसंख्या, अक्षरसंख्या, संघातसंख्या, पद(द्र. पूर्व) संख्या, पादसंख्या, गाथासंख्या, श्लोकसंख्या, वेष्टकसंख्या, निर्युक्तिसंख्या, अनुयोगद्वारसंख्या प्राभृतसंख्या, प्राभृतिकासंख्या, प्राभृत-प्राभृतिकासंख्या और वस्तु संख्या । ३३८ परिकर्म की परिभाषा चौदह पूर्व संख्येय वस्तु - २२५ अध्याय, संख्येय चूलिकावस्तु, संख्येय प्राभृत, संख्येय प्राभृत-प्राभृत, संख्येय प्राभृतिका, संख्येय प्राभृत- प्राभृतिका, पद-प्रमाण से संख्येय लाख पद हैं । १२. दृष्टिवाद का स्वरूप दिट्टिवाए णं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ । से णं अंगट्टयाए बारसमे अंगे, एगे सुयक्बंधे, चोट्स पुव्वाई, संखेज्जा वत्थू, संखेज्जा चुल्लवत्थू, संखेज्जा पाहुडा, संखेज्जा पाहुडपाडा, संखेज्जाओ पाहुडियाओ, संखेज्जाओ पाहुडियाओ, संखेज्जाई पयसहस्साइं पयग्गेणं । ( नन्दी ९२, १२३ ) संखेज्जावत् त्ति पणुवीसुत्तराणि दो सयाणि । ( नन्दीहावृ पृ९३ ) दृष्टिवाद में सर्वभावों की प्ररूपणा की गई है । यह अंग की दृष्टि से बारहवां अंग है । इसमें एक श्रुतस्कन्ध, ३. दृष्टिवाद के प्रकार दिवा से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहापरकम्मे सुत्ताइं पुव्वगए अणुओगे चूलिया । ( नन्दी ९२ ) दृष्टिवाद के पांच प्रकार हैं१. परिकर्म २. सूत्र ३. पूर्वगत ४. परिकर्म की परिभाषा परिकम्मे - जोग्गकरणं, जहा गणितस्स सोलस परिकम्मा । तग्गहितसुत्तत्थो से सगणितस्स जोग्गो भवति । एवं गहितपरिकम्मसुत्तत्थो सेससुत्तादिदिट्टिवातसुतस्स जोग्गो भवति । ( नन्दी पृ७२ ) परिकर्म का अर्थ है- योग्यता सम्पादित करने वाली विधि या प्रणाली । जिस प्रकार गणितशास्त्र के अभ्यास के लिए संकलन, व्यकलन, गुणन, भाग आदि सोलह परिकर्मों का ज्ञान अपेक्षित होता है, उसी प्रकार विवक्षित परिकर्म के सूत्रार्थ को जान लेने पर ही अध्येता शेष सूत्र आदि रूप दृष्टिवाद श्रुत को ग्रहण करने के योग्य हो सकता है। प्रकार ४. अनुयोग ५. चूलिका परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा- सिद्धसेणिया For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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