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________________ काल ८४ लाख नयुत - प्रयुतांग ८४ लाख प्रयुतांग - प्रयुत ८४ लाख प्रयुत चूलिकांग ८४ लाख चूलिकांग - चूलिका ८४ लाख चूलिका - शीर्ष प्रहेलिकांग ८४ लाख शीर्ष प्रहेलिकांग - शीर्षप्रहेलिका . यहां तक गणित (संख्या) है, यहां तक ही गणित का विषय है, इसके पश्चात् औपमिक काल प्रवृत्त होता है । पूर्वांग, पूर्व शीर्ष प्रहेलिका इच्छियमाणेण गुण पणसुण्णं चउरासीतिगुणितं वा । काऊण तत्तिवारा पुव्र्वगादीण मुण संखं ॥ पुव्वंगे परिमाणं पण सुणा चउरासीती य । एतं एगं पुव्वं गं चुलसीतीए सयसहस्सेहि गुणितं एगं पुव्वं भवति । तस्सिमं परिमाणं- दस सुण्णा छप्पण्णं च सहस्सा कोडीणं सत्तरि लक्खा य सीसपहेलियाए चत्तालं सुण्णतयं ततो छ णव दो ति अट्ठ एक्को सुण्णं अट्ठ सुणं अट्ठ चतु अट्ठ छ छ णव अट्ठ एक्को दो छ सुण्णं चतु छ णव छ पण सत्त णव णव छ पण ति सत्त णव सत्त पण एक्को एक्को चतु दो सुण्णं एक्को सुणं ति सत्तणं तिपण दोति छ दो अट्ठ पण सत्त य ठवेज्जा । (अनुचू पृ ३७-४०) विवक्षित संख्या को चौरासी लाख से गुणित करने पर जो फलित आये, वह पूर्वांग आदि है । पूर्वांग का संख्यापरिमाण है ८४००००० । इस एक पूर्वांग (८४ लाख) को एक पूर्वांग ( ८४ लाख) से गुणन करने पर एक पूर्व होता है- पूर्वांग x पूर्वांग = पूर्व ८४०००००X८४००००० ७०५६०००००००००० । इसी प्रकार त्रुटितांग आदि संख्याएं उत्तरोत्तर चौरासी लाख से गुणित होने पर होती हैं। अंतिम संख्या 'शीर्ष प्रहेलिका' में ५४ संख्यांक और १४० शून्य – कुल १९४ अंक होते हैं । वे संख्यांक ये हैं - ७५८२६३२५३० ७३०१०२४११५७९७३५६९९७५६९६४०६२१८९६६८ ४८०८०१८३२९६ । इनके आगे १४० शून्य लगाने से एक शीर्षप्रहेलिका होती है । ( माथुरी वाचना में यह संख्या स्वीकृत है । वल्लभी वाचना के अनुसार शीर्षप्रहेलिका की संख्या २५० अंकों (७० अंक और १८० शून्य ) की है । इसका उल्लेख ज्योतिष्करंड में हुआ है ।) Jain Education International २१२ ६. शीर्षप्रहेलिका ( गणित ) का प्रयोजन तोता दिया जाव पुव्वकोडीएत्ति - एतानि धर्मचरणकालं पडुच्च णरतिरियाण आउपरिमाणकरणे उवजुज्जति । णारगभवणवंतराणं दसवरिससहस्सादि उवजुज्जति । आउचिताए तुडियादिया सीसपहेलियंता एते प्रायसो पुव्वगतेसु जविएसु आउयसेढीए उवउज्जंति । अन्यत्र यदृच्छातः एताव ताव गणियं अंकवणाए ।......... जावयं अंक वाणादिट्ठा ताव गणितज्ञानमपि दृष्टं डिगादि सीसपहेलियंतं । ( अनुचू पृ ५७ ) अन्तर्मुहूर्त्त से पूर्व कोटि तक की संख्या का उपयोग मनुष्यों और तिर्यंचों के धर्माचरणकाल के संदर्भ में आयुष्यपरिमाण के लिए किया जाता है। नारक, भवनपति और व्यंतर देवों के आयुष्य का मापन दस हजार वर्ष आदि में होता है । त्रुटित से लेकर शीर्ष प्रहेलिका तक की संख्या का उपयोग प्रायः पूर्वगत-यविकों में आयुष्य श्रेणी के लिए किया जाता था । अन्यत्र भी इच्छानुसार इसका उपयोग किया जाता था । जहां तक अंकस्थान स्थापित किये जा सकते हैं, वहां तक गणित के ज्ञान का निरूपण किया गया है। शीर्ष प्रहेलिका का प्रयोजन सी पहेलिया चतुणतुयं ठाणसयं जाव ताव संववहारकालो । जाव संववहारकालो ताव संववहारकाल विसए, तेण य पढमढविणेरइयाणं भवणवंतराण भरहेरवतेसु य सुसमदूतमाए पच्छिमे भागे णरतिरियाणं आऊ उवमिज्जति । किं च सीसपहेलियाए य परतो अत्थि संखेज्जो कालो सोय अणतिसईणं अववहारिउत्तिकाउं ओवम्मि पक्खित्तो । ( अनुचू पृ ४० ) शीर्षप्रहेलिका के अंकों की संख्या १९४ है- यहां तक संव्यवहारकाल है । इस संव्यवहारकाल से प्रथम पृथ्वी के नैरयिकों, भवनपतियों, व्यंतरों, भरत तथा ऐरवत क्षेत्र के सुषम - दुःषमा काल के पश्चिम भाग के मनुष्यों और तिर्यंचों के आयुष्य का माप किया जाता है । शीर्षप्रहेलिका से आगे भी संख्येय काल होता है किन्तु उसका उपयोग अतिशयज्ञानी ही कर सकता है । अनतिशयज्ञानी के लिए वह व्यवहार्य नहीं इसलिए औपम्य काल में उसका समावेश किया गया है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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