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________________ कालप्रमाण के प्रकार काल १०. यथायुष्ककाल १५. वर्णकाल नेरइयतिरियमणुयादेवाण अहाउयं तु जं जेण। पंचण्हं वण्णाणं जो खलु वणेण कालओ वण्णो । निव्वत्तियमण्णभवे पालेंति अहाउकालो सो।। सो होइ वण्णकालो वणिज्जइ जो व जं कालं ।। (आवनि ६६४) (आवनि ७३१) नरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव अपने-अपने भव पांच वर्षों में जो काला वर्ण है वह वर्णकाल है। में जो आयूष्य कर्म का वेदन करते हैं, वह यथायुष्ककाल अथवा जिस काल में जीव आदि पदार्थों का वर्णन किया किया जाता है, वह वर्णकाल है। ११. उपक्रमकाल १६. भावकाल सादीसपज्जवसिओ चउभंगविभागभावणा एत्थं । दुविहोवक्कमकालो सामायारी अहाउयं चेव ।। ओदइयादीयाणं तं (आवनि ६६५) जाणसु भावकालं तु ॥ (आवनि ७३२) उपक्रमकाल के दो प्रकार हैं जिससे औदयिक आदि भावों की सादि-सपर्यवसित १. सामाचारी-ओघ, पदविभाग आदि । आदि चार विकल्प व्यवस्था को जाना जाता है, वह (द्र. सामाचारी) भावकाल है। २. यथायुष्क-सोपक्रम आयुष्य। (द्र. कर्म) १७. कालप्रमाण के प्रकार । १२. देशकाल __ कालप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पएसनिप्फण्णे जो जस्स जयाऽवसरो कज्जस्स सुभासूभस्स सोपायं। य विभागनिप्फण्ण य । (अनु ४१३) भण्णइ स देसकालो........।। कालप्रमाण के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं(विभा २०६३) प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न । पएसनिप्फण्णे-एगसमयट्टिईए जो जिस शुभाशुभ कार्य का अवसर है, वह देशकाल दुसमयट्टिईए है । वह सोपाय है। तिसमयट्ठिईए जाव दससमयट्टिईए संखेज्जसमयट्टिईए असंखेज्जसमयट्टिईए। (अनु ४१४) १३. कालकाल एक समय की स्थिति, दो समय की स्थिति, तीन कालो ति मयं मरणं जहेह मरणं गउ त्ति कालगओ। समय की स्थिति यावत् दस समय की स्थिति, संख्येय तम्हा स कालकालो जो जस्स मओ स मरणकालो ॥ समय की स्थिति, असंख्येय समय की स्थिति ---यह (विभा २०६६) प्रदेशनिष्पन्न काल है। लोक में मृत व्यक्ति के लिए कहा जाता है कि वह विभागनिप्फण्णेकालधर्म को प्राप्त हो गया। लोकरूढ़ि से यहां प्रथम समयावलिय-मुहुत्ता, दिवसमहोरत्तपक्खमासा य।। काल का अर्थ है-मरण । अतः कालकाल का अर्थ है संवच्छर-जुग-पलिया सागर-ओस प्पि-परियड़ा। मरणकाल । (अनु ४१५) समय, आवलिका, मुहूर्त, दिवस, अहोरात्र, पक्ष, १४. प्रमाणकाल मास, संवत्सर, युग, पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अद्धाकालविसेसो पत्थयमाणं व माणसे खित्ते। अवसर्पिणी और पूदगलपरावर्त्त-यह विभागनिष्पन्न सो संववहारत्थं पमाणकालो अहोरत्तं ॥ काल है। (विभा २०६८) समय मनुष्यक्षेत्र में अहोरात्र आदि अद्धाकाल विशेष समयः परमनिकृष्टः कालविभाग:, स च प्रवचनप्रतिप्रमाणकाल है। प्रस्थकमान की तरह व्यवहार का प्रवर्तन पादितात्पलपत्रशतव्यतिभेदोदाहरणात् जरत्पदृशाटिकाइसका प्रयोजन है। पाटनदष्टान्ताच्चावसेयः । (नन्दीमवृ प १८५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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