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________________ अस्वाध्याय ७२. परसमुत्थ अस्वाध्याय पदार्थों के निमित्त से घटित होती है। जैसे-आकाश ५. अस्वाध्याय : महामारी, दुभिक्ष, युद्ध एक द्रव्य है । उसमें घट के संयोग से घटाकाश के रूप में ६. अस्वाध्याय : चन्द्रग्रहण-सूर्यग्रहण उत्पाद, पटाकाश के रूप में विनाश और आकाश के रूप ७. अस्वाध्याय की तिथियां में ध्रौव्य घटित होता है। ८. अस्वाध्याय काल का निर्धारण १०. आकाश : पर्याय-परिमाण * स्वाध्याय का काल (क्र. स्वाध्याय) किमणंतगुणा भणिया जमगुरुलहुपज्जया पएसम्मि। । * अस्वाध्याय : ज्ञान का अतिचार (द. आचार) एक्केक्कम्मि अणंता पण्णत्ता वीयरागेहिं॥ ९. अस्वाध्याय के हेतु (विभा ४९१)। १०. अस्वाध्याय से उत्पन्न दोष सब आकाशप्रदेशों का परिमाण सब आकाशप्रदेशों से १. अस्वाध्याय के प्रकार अनन्तगुण है । आकाशप्रदेश अगुरुलघ हैं। उनके पर्याय भी अगुरुलघु हैं। अर्हतों द्वारा प्रज्ञप्त है कि प्रत्येक असज्झायं तु दुविहं आयसमुत्थं च परसमूत्थं च ।" आकाशप्रदेश में अनन्त अगुरुलघु पर्याय हैं। (आवनि १३२२) अस्वाध्याय के दो प्रकार हैंअस्पृशद्गति- स्पर्श न करते हुए गति करना। १. आत्मसमुत्थ-अपने शरीर में व्रण आदि से रक्त अस्पृशद्गतिरिति नायमर्थो यथा नायमाकाश- झरना। २. परसमुत्थ-दूसरे से संबंधित । प्रदेशान्न स्पृशति अपि तु यावत्सु जीवोऽवगाढस्तावत एव २. परसमुत्थ अस्वाध्याय के प्रकार स्पृशति न तु ततोऽतिरिक्तमेकमपि प्रदेशम् । (उशावृ प ५९७) संजमघाउ उप्पाए सादिव्वे वुग्गहे य सारीरे ।.. अस्पृशद् गति का अर्थ यह नहीं है कि इसमें जीव (आवनि १३२३) आकाशप्रदेशों का स्पर्श नहीं करता। अस्पृशद्गति में परसमुत्थ अस्वाध्यायिक के पांच प्रकार हैंजीव उतने ही आकाशप्रदेशों का स्पर्श करता है, जितने १. संयमघाती, २. औत्पातिक, ३. देवप्रयुक्त, आकाशप्रदेशों में वह अवगाढ/व्याप्त है। उससे अतिरिक्त ४. व्युद्ग्रह, और ५. शरीर संबंधी। एक आकाशप्रदेश का भी स्पर्श नहीं करता। संयमघाती मुक्त जीव अस्पृशद्गति से ही ऊपर जाते हैं। महिया य भिन्नवासे सच्चित्तरए य संजमे तिविहं । (द्र. सिद्ध) दव्वे खित्ते काले जहियं वा जच्चिरं सव्वं ।। अस्वाध्याय-स्वाध्याय का प्रतिषेध । (आवनि १३२७) """"ठाणाइभास भावे मुत्तुं उस्सासउम्मेसे ।। १. अस्वाध्याय के प्रकार (आवमा २१७) * आत्मसमुत्थ संयमघाती अस्वाध्याय के तीन भेद हैं० परसमुत्थ १. महिका-कुहरा, २ भिन्नवर्षा-बुबुद व २. परसमुत्थ के प्रकार फुआर वाली वर्षा, ३. सचित्त रज । ० संयमघाती जिस क्षेत्र में जितने काल तक कुहरा आदि गिरता ० औत्पातिक • देवप्रयुक्त हो, उस क्षेत्र में उतने काल तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। उस समय कायोत्सर्ग, संभाषण, प्रतिलेखन, ० व्युद्ग्रह-संबंधी • शरीर-संबंधी गमनागमन आदि क्रियाएं भी प्रतिषिद्ध हैं। क्योंकि उस समय सब कुछ अप्काय से भावित हो जाता है। ३. अस्थि संबंधी अस्वाध्याय उच्छवास और उन्मेष-निमेष की क्रिया निषिद्ध नहीं है। ४. राजा आदि की मृत्यु और अस्वाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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