SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अरूपी अस्तिकाय में उत्पाद व्यय अधर्मास्तिकाय के भेद अहम्मे तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए । अधर्मास्तिकाय के तीन भेद हैंअधर्मास्तिकाय, उसका देश तथा प्रदेश । ( उ ३६।५) ७१ अधर्मास्तिकाय के पर्याय अधर्मः अधर्मास्तिकायः स्थितिः स्थानं गतिनिवृत्ति - रित्यर्थः । ( उशावृ प५५९) अधर्म, अधर्मास्तिकाय, स्थिति, स्थान और गति - निवृत्ति – ये अधर्मास्तिकाय के पर्याय हैं । धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय में भेद धर्माधर्मास्तिकायौ परस्परं लोलीभावेनैकस्मिन्नाकाशदेशे व्यवस्थितो, तथापि यो गतिपरिणामपरिणतयोर्जीवपुद्गलयोर्गत्युपष्टम्भहेतुर्जलमिव मत्स्यस्य स खलु धर्मास्तिकायः । यः पुनः स्थितिपरिणामपरिणतयोर्जीवपुद्गलयोरेव स्थित्युपष्टम्भहेतुः क्षितिरिव भषस्य स खलु अधर्मास्तिकाय इति लक्षणभेदाभेदो भवति । ( नन्दीमवृप १४० ) धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय परस्पर एकीभूत हैं, एक आकाशदेश में अवस्थित हैं फिर भी दोनों के लक्षण भिन्न हैं । जो गमन में प्रवृत्त जीव और पुद्गल की गति का उपष्टम्भ - हेतु बनता है, वह धर्मास्तिकाय है । जैसे - मत्स्य के लिए जल । जो स्थिति परिणाम में परिणत जीव और पुद्गल की स्थिति का उपष्टम्भ हेतु बनता है, वह अधर्मास्तिकाय है । जैसे मछली के लिए पृथ्वी । यही इनमें भेद है । ६. आकाशास्तिकाय का निर्वचन आङिति मर्यादया - स्वस्वभावापरित्यागरूपया काशन्ते - स्वरूपेणैव प्रतिभासन्ते तस्मिन् पदार्था इत्याकाशं यदा त्वभिविधावाङ तदा अङिति - सर्वभावाभिव्याप्त्या काशत इत्याकाशं तदेवास्तिकाय आकाशास्तिकाय: । ( उशावृ प ६७२ ) जिसमें रूपी पदार्थ अपने-अपने स्वभाव का त्याग किए बिना ही अपने स्वरूप में प्रतिभासित होते हैं, वह द्रव्य है - आकाश । Jain Education International अथवा जो समस्त पदार्थों की व्याप्ति से शोभित होता है, वह आकाश है । वही आकाशास्तिकाय है । आकाशास्तिकाय का लक्षण भायणं सव्वदव्वाणं, नहं ओगाहलक्खणं । (3 2518) आकाश सर्व द्रव्यों का भाजन है । उसका लक्षण है - अवकाश देना । तद्ध्यवगाढुं प्रवृत्तानामालम्बनीभवति, अनेनावगाहकारणत्वमाकाशस्योक्तम् । ( उशावृ प ५६० ) अवगाह लेने में प्रवृत्त द्रव्यों को यह आलम्बन देता है । आकाश के भेद 'अस्तिकाय आगासे तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए । ( उ ३६।६ ) आकाशास्तिकाय के तीन भेद हैं - आकाशास्तिकाय, उसका देश तथा प्रदेश । ७. धर्म-अधर्म - आकाश : क्षेत्र काल की अपेक्षा धमाधम् य दोवेए, लोगमित्ता वियाहिया । लोगालोगे य आगासे ॥ ( उ ३६।७ ) धर्मास्ता और अधर्मास्तिकाय - ये दोनों लोकआकाश लोक और अलोक - दोनों में व्याप्त प्रमाण है । धम्माधम्मागासा, तिन्नि वि एए अणाइया । अपज्जवसिया चेव, सव्वद्धं तु वियाहिया || (उ ३६८) धर्म, अधर्म और आकाश - ये तीन द्रव्य अनादि, अनन्त और सार्वकालिक होते हैं । ८. धर्मास्तिकाय आदि का सप्रदेशत्व - अप्रदेशत्व अरूवीअजीवाणं तिन्हं अत्थिकायाणं परनिमित्तं सपदेसत्तं वा अपदेसत्तं वा । ( आवचू २ पृ ५ ) धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाश । स्तिकाय अरूपी अजीव हैं । ये पर- निमित्त से सप्रदेशी या अप्रदेशी होते हैं । ६. अरूपी अस्तिकाय में उत्पाद-व्यय अरू विदव्वाणं परपच्चया उप्पायठितिभंगा भण्णंति । जहा घडागासेणं संजुत्तस्स आगासस्स घडागाससंयोगेण उप्पायो पडागासत्तेण विगमो आगासत्तेण अवट्टिई । ( दजिचू पृ १६ ) अरूपी द्रव्यों में उत्पाद-व्यय- ध्रौव्य की त्रिपदी पर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy