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________________ अस्तिकाय अधर्मास्तिकाय का लक्षण .."अत्थित्ति बहुपएसा तेणं पंचत्थिकाया उ॥ तीन भाग, चार भाग आदि के रूप में विशेष विवक्षा (आवनि १४३६) होती है, वह देश है। अस्तीत्ययं त्रिकालवचनो निपातः, अभूवन् भवन्ति प्रदेशा:-धर्मास्तिकायादिसम्बन्धिनो निविभागा भविष्यन्ति चेति भावना। (आवहाव २ पृ १८५) भागाः । (उशावृ प २५) अस्ति शब्द त्रिकालवाची है-था, है और रहेगा। धर्मास्तिकाय आदि स्कंधों के निरंश भाग प्रदेश जिसकी कालिक सत्ता हो, जिसके प्रचर प्रदेश हों, वह ___ कहलाते हैं। अस्तिकाय कहलाता है, अत: अस्तिकाय पांच ही हैं। धर्मास्तिकाय का अस्तित्व ३. काल अस्तिकाय नहीं अत्थि परिमाणकारी लोगस्स पमेयभावओऽवस्सं । णिच्छयणताभिप्पायतो एक एव वर्तमानसमय: नाणं पिव नेयस्सालोगत्थित्ते य सोऽवस्सं ॥ तस्स एगत्तणतो खंधदेसादिकायकप्पणा णत्थि, तीताणा (विभा १८५५) गताण य विणट्राणप्पन्नत्तणतो अभावो। आवलिकादि- __ जैसे ज्ञेय पदार्थों का प्रमाता है ज्ञान, वैसे ही लोकग्रहणं संववहारस्स हेउं । (अनुच पृ ३०) प्रमेय का प्रमाता/लोक का परिमाणकारी द्रव्य अवश्य निश्चय नय के अनुसार वर्तमान क्षण एक ही है, है और वह है धर्मास्तिकाय। अलोक के अस्तित्व से अतः उसमें स्कंध, देश आदि विभागों की कल्पना नहीं उसकी उपयोगिता सिद्ध होती है। की जा सकती। अलोक में धर्मास्तिकाय नहीं अतीत के क्षण नष्ट हो जाते हैं, अनागत का क्षण निरणग्गहत्तणाओ न गई परओ जलादिव झसस्स । उत्पन्न नहीं है। अतः काल अस्तिकाय नहीं है। काल जो गमणाणुग्गहिया सो धम्मो लोगपरिमाणो ।। के आवलिका, मुहूर्त आदि विभाग सांव्यवहारिक काल (विभा १८५४) धर्मास्तिकाय के अनुग्रह के अभाव में जीव की लोक ४. धर्मास्तिकाय का लक्षण से परे गति नहीं है। जैसे जल के अभाव में मछली की गइलक्खणो उ धम्मो। (उ २८१९) गति नहीं होती है। गति में अनुग्रह करने वाला धर्माधर्म (धर्मास्तिकाय) का लक्षण है-गति। स्तिकाय लोकपरिमाण है। जीवपोग्गलदव्वाण गतिकिरियापरिणयाण उवग्गह- धर्मास्तिकाय : परिणमन की सदृशता करणत्तणओ धम्मो। (अनुचू पृ २९) धर्मश्चासावस्तिकायश्च धर्मास्तिकायः-सकलदेशजो गतिक्रिया में परिणत जीव और पुद्गल की। प्रदेशानुगतसमानपरिणतिमद्विशिष्ट द्रव्यम् । गति में उपकारक है, वह धर्मास्तिकाय है । (उशावृ प ६७२) धर्मास्तिकाय के भेद धर्मप्रदेशों का समूह धर्मास्तिकाय है। यह एक :धम्मत्थिकाए तद्देसे, तप्पएसे य आहिए। विशिष्ट द्रव्य है-सम्पूर्ण देश और प्रदेशों से अनुगत (उ ३६।५) अखण्ड द्रव्य है। इसमें परिणमन की सदृशता है । धर्मास्तिकाय के तीन भेद हैं ५. अधर्मास्तिकाय का लक्षण धर्मास्तिकाय और उसका देश तथा प्रदेश । दिश्यते-प्रदेशापेक्षया समानपरिणतरूपत्वेऽपि अहम्मो ठाणलक्खणो । ___ (उ २८।९) देशापेक्षायां असमानपरिणतिमाश्रित्य विशिष्टरूपतया अधर्म (अधर्मास्तिकाय) का लक्षण है स्थिति ।। विवक्ष्यते-उपदिश्यत इति देशः–त्रिभागचतुर्भागादि- ठितिहेतृत्तणतो अधम्मो जीवपोग्गलाण ठितिपरिणस्तद्देशः । (उशावृ प ६७२) ताण उवग्गहकरणा वा अधम्मोति। (अनुचू पृ २९) प्रदेश की अपेक्षा समान परिणति होने पर भी देश जो स्थितिक्रिया में परिणत जीव और पुद्गल की की अपेक्षा असमान परिणति के आधार पर जिसकी स्थिति में उपकारक है, वह अधर्मास्तिकाय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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