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________________ (१२७) प्राणंद अभिधानराजेन्द्रः। पाणंद मुणेइ । तए णं से आणदे समणोवासए तस्सव मित्त. पासइ । एवं दक्खिणेणं पच्चत्थिमेण य उत्तरेणं जाव जाव पुरो जट्ठपुत्तं कुटुंबे ठवेइ २ त्ता । एवं न्यासी-मा| चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वतं जाणइ पासइ । उहं जाव णं देवाणुप्पिया ! तुम्भे अजप्पभिई केइ ममं बहुसु क- सोहम्म कप्पं जाणइ पासइ अहे जाव इमी से रयणप्पअसुजाव आपुच्छउ वा पडिपुच्छउ वा ममं अट्ठाए म.| भाए पुढवीए लोलुयं अच्चुयं णरयं चउरासीइवाससहस्ससम्वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवरखडेउ वा| द्वितिय जाणइ पासइ (सूत्र-१४)। उबकरेउ वा । तए णं से प्राणंदे समणोवासए जेट्टपुत्तं तेणं कालणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोमित्तणाई श्रापुच्छह २त्ता सयाओ गिहाम्रो पडिणिक्ख- सरिव परिसा निग्गया .जाव पडिगया। तेणं कालेणं मइ २ ता वाणियग्गामं णयर मझ मज्झेणं णिग्गच्छह | तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स जडे अंते२त्ता जेणेव कोल्लाए सत्रिवेसे जेणेव नायकसे जेणेव | वासी इंदभूईणाम भणगारे गोयमगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समपोसहसाला तेणेव उवागच्छद २ ता पोसहसालं पम- चतुरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे कणगपुलअइ २ ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहइ २ ता दम्भसं- गनिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे घोरतवे महाथारं संथरइ २ ता दग्यसंथारयं दुरूहइ २ त्ता पोसहसा- तवे उराले घोरगुणे घोरतवस्सी घोरवंभचेरवासी उच्छूलाते पोसहिते दम्भसंथारोवगये समणस्स भगवओ महा- ढसरीरे संखित्तविउलतेउलेसे जियकोहे जियमाणे जियमाए वीरस्स अंतियं धम्मपमत्ति उवसंपञ्जित्ता णं विहरइ ।। जियलोभे जाइसंपले कुलसंपरणे बलसंपले रूवसंप(सत्र-१२)। एणे जाव तेयसी छटुं छटेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं तए णं से आणंदे समणोवासए पढम उवासगपडिमं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ । तए णं से उपसंपज्जित्ता णं विहरइ । पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं भगवं गोयमे छडक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं सम्मं काएणं फासेइ जाव सज्झायं करेइ वीआए पोर रु)सीए झाणं झियाइ, तईयाए आराहेइ । तए णं से आणंदे समणोवामए दोचं उवामगप पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंताए मुहपत्तियं पडिलेहेइ डिम,अहासुकाएवं-तचं उवा०,चउत्थं उ०पंचमं उ०छटुंउ० २ त्ता । भायणवत्थाई पडिलहेइ २ ता । भायणवत्थाई सत्तमं उ० अट्ठमं उ० नवमं उ० दशमं उ० एकारसमं उ. पमजइ २ ता भायखाई उग्गाहेइ २ ता जेणेव समणे जाव आराहेइ (सूत्र-१३)। तए णं से आणंदे समणोवासए भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ ता समणं भगवं इमेणं एयारवेणं उरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पयाहित्तेणं महावीरं वंदइ नमसइ २ त्ता एवं वयासी-इच्छामि तवोकम्मेणं सक्के०जाव किसे धमणिसतते जाए । तए णं णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुएणाए छट्टक्खमणपारणगंसि तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स अमया कयाइ पुव्वरत्ता वाणियग्गामे णयरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरस जाव धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए। मुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए अहासुहं देवाणुचिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पन्ने एवं खलु अहं | पिया १ मा पडिबंधं करेह । तए णं गोयमे समणेणं भगइमेणंजाव धमणिसंतए जाए तं अत्थि ता मे उहाण क- वया महावीरेणं अब्भणुमाए समाणे समणस्स भगवओ म्म-बल-वीरिए पुरिसकारपरक्कमे सद्धा धिई संवेगे। तं० महावीरस्स अंतियाो दुइपलासाओ चेइयाश्रो पडिनिजाव ताम अत्थि उहाणे सद्धा धिई संवेगे जाव मे ध- खमइ २ ता अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपरिलोम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुह- यणाए दिट्ठीए पुरो इरियं सोहमाणे जेणेव वाणियत्थी विहरइ, ताव ता मे सेयं कल्लंजाव जलंते अपच्छि-ग्गामे णयरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता वाणियग्गामे णगरे ममारणंतियमंलेहणाझूमणासितस्स भतपाणपडिया- उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरिइक्खियस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए । एवं याए अडइ । तए णं से भगवं गोयमे वाणियग्गामे नगरे संपहेइ संपेहिता कल्लं पाउ०जाव अपच्छिमं० जाव कालं | जहा पएणत्तीए तहा जाव भिक्खायरियाए जाव अअगवखमाणे विहरइ । तए णं तस्स आणंदस्स सम- डमाणे अहापज्जतं भत्तपाणं संमं पडिगाहेइ २ त्ता वाणोवासगस्स अएणया कय इ सुभेणं अज्झवसाणणं णियगामाअो पडिजिग्गच्छइ २ ता कोलायस्स सन्निसुभेणं परिणामणं लेसाहिं वि सुज्झमाणीहिं णाणावर- वेसस्स अदरसामंते णं वीनीवयमाणे बहुजणसई णिसाणिज्जाणं कम्माणं खोवसमेणं ओहिनाणे समुप्पन्ने मेइ बहुजणो अएणमामस्म एवमाइक्खइ० ४ एवं खलु पुरच्छिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसइयं खत्तं जाणइ देवाणुप्पिया! समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतेवासी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016042
Book TitleAbhidhan Rajendra kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherAbhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
Publication Year1986
Total Pages1246
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size47 MB
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