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________________ षष्ठभागमे भाये हुए कतिपय शब्दों के संक्षिप्त विषय१-' मग्ग' शब्द पर द्रव्यस्तव और भावस्तव रूप से मार्ग के दो भेद, मार्ग का निक्षेप, मार्ग के स्वरूप का निरूपण इत्यादि अनेक विचार हैं । २-' मरण' शब्द पर सपराक्रम और अपराक्रम मरण, पादपोपगमनादिकों का संक्षिप्त स्वरूप, भक्तपरिज्ञा, बालमरण, कालद्वार, अकाम मरण और सकाम मरण,विमोक्षाध्ययनोक मरणविधि,मरण के भेद इत्यादि विषय दिये गये हैं। ३-' मल्लि' शब्द पर मन्तिनाथ भगवान की कथा द्रष्टव्य है। ४-'मिच्छत्त' शब्द पर मिथ्यास्व के छ स्थान, मिथ्यात्वप्रतिक्रमण, मिथ्यात्व की निन्दा, मिथ्यात्व का स्वरूप, द्रव्य और भाव से मिध्यात्व के भेद आदि निरूपित हैं। ५-'मेहुण' शब्द पर मैथुन के निषेध का गंभीर विचार है । ६- मोक्ख' शब्द पर मोक्ष की सिद्धि, निर्वाण की सत्ता है, या नहीं, इसका निरूपण, मोच का कारण ज्ञान और क्रिया है, धर्म का फल मोक्ष है, मोक्ष पर साइख्य और नैयायिकों का मत, मोक्ष पर विशेष विचार, मोच पर वेदान्तियों के मत का निरूपण और खण्डन. स्त्री की मोक्षसिद्धि मोक्ष का उपाय इत्यादि विषय हैं। ७-'रोहरण' शब्द पर रजोहरण शब्द का अर्थ और व्युत्पत्ति, रजोहरण का प्रमाण, मांसचचुवाले मनुष्यों को मूक्ष्म जीव दिखाई नहीं दे सकते इसलिये उनको जीवदयार्थ रजोहरण धारण करना चाहिये, रजोहरण की दशा (किनारी या अग्रभाग) सूक्ष्म नहीं करना चाहिये, रजोहरण के धारण करने का क्रम और नियम, अनिमृष्ट रजोहरण प्रहण नहीं करना चाहिये इत्यादि विषय देखने के योग्य है। -'राइभोयण' शब्द पर रात्रिभोजन का त्याग, रात्रिभोजन करने वाला अनुद्घातिक होता है, रात्रिभोजन के चार प्रकार, रास्ते में रात्रिको आहार लेने का विचार,कैसा पाहार रात्रि में रक्खा जा सकता है इसका विवेक,राजा से द्वेष होने पर रात्रि को भी आहार लेने में दोषाभाव, रात्रि में उद्गार आने पर उगिरण करने में दोष, रात्रिभोजन प्रतिगृहीत हो तो परिष्ठापना करना, रात्रिभोजन के प्रायश्चित्त, औषधि के रात्रि में लेने का विचार इत्यादि अनेक विषय हैं। 8-'रुद्दज्माण' शब्द पर रौद्रध्यान का स्वरूप, और उसके चार भेद,रौद्रध्यानी के चिह्न आदि अनेक विषय है। १० 'लेस्सा' शब्द पर लेश्या के भेद, लेश्याके अर्थ, आठ लेश्याओं का अल्पबहुत्व, देवविषयक अल्पबहुत्व, कौन लेश्या कितने ज्ञानों मे मिलती है, कौन लेश्या किस वर्ण से साधित होती है, मनुष्यों की लेश्या, लेश्याओं में गुणस्थानक, धर्मध्यनियों की लेश्या आदि विषय हैं । ११-'लोग'शब्द पर लोक शब्द का अर्थ और व्युत्पत्ति,लोक का लवण,लोक का महत्व,लोक का संस्थान आदि विषय हैं। १२-'वत्थ' शब्द पर लिखा है कि कितनी दूर तक वख के वास्ते जाना, कितनी प्रतिमा से वस्त्र का गवेषण करना, याचा वस्त्र और निमन्त्रण वस्त्र की यात्रा पर विचार. निग्रन्थिों के वस्त्र लेने का प्रकार, चातुर्मास्य में वख लेने पर विचार, प्राचार्य की अनुज्ञा से ही साधू अथवा साध्वी को वस्त्र लेना चाहिये, वस्त्र का प्रमाण (फटे) वस्त्र लेने की अनुज्ञा, वस्त्रों के रँगने का निषेध, वस्त्र के सीने पर विचार, अन्ययथिक और पार्श्वस्थादि कों को वख देने का निषेध, वस्त्र को यत्न से रखना जिससे विकलेन्द्रियों का घात न हो. वो के धोने क चार्य के मलिन वस्त्रों के धोने की अनुज्ञा इत्यादि विशेष विचार हैं। १३-' वसहि' शब्द पर किस प्रकार के उपाश्रय में रहना चाहिये इसका निरूपण, उपाश्रय के उद्गमादि दोषों का निरूपण, भिक्ष के वास्ते असंयत उपाश्रय वनावे, प्रविधि से उपाश्रय के प्रमार्जन में दोष. जहाँ गृहप का आहार करता है वहां नहीं रहना, सस्त्रीक उपाश्रय में नहीं रहना, रुग्ण साधु की प्रतिक्रिया, जहां गृहिणी मेथुन की वाञ्छा करे उस गृहपति के गृह में नहीं वसना, गृहपति के घर में वसने के दोष, प्रतिबद्ध शय्या में वमने के दोष जिममें घरवाला भोजन बनावे वहां नहीं रहना, और जहां पर घर का मालिक काष्ठ फाड़े या अग्नि जलावे वहां नहीं रहना, जहाँ पर साधर्मिक निरन्तर आते हों वहां नहीं रहना, कार्यवश से चरक और कार्पटिकों के साथ वसने में विधि, के याचन का प्रकार, जहां पर गृहपति के मनुष्य कलह करते हों या अभ्यङ्ग ( मर्दन) करते हों वहां नहीं रहना, कब कहां कितना वास करना इसका नियम, जहां राजा हो उस उपाश्रय मे वसने का निषेध, साध्वियों की वसति में साधु के जाने का निषेध इत्यादि विषय हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016041
Book TitleAbhidhan Rajendra kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherAbhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
Publication Year1986
Total Pages1064
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size38 MB
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