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________________ १४-'विजय' शब्द पर विजय की विशेषवक्तव्या देखना चाहिये । १५-' विनय' शब्द पर विनय के पाँच ५ भेद और सात ७ भेद, विनयमूलक धर्म की सिद्धि, गुरु के निकट विनय की आवश्यकता, आर्यिका के विनय इत्यादि विस्तृत विषय देखने के योग्य हैं। १६ 'विमान' शब्द पर विमानों की संख्या, और विमानों का मान, विमानों का संस्थान,विमानों के वर्ण,विमानों की प्रभा , गन्ध, स्पर्श, और महत्व प्रादि देखने के योग्य हैं। १७-'विहार' शब्द पर प्राचार्य और उपाध्याय के एकाकी विहार करने का निषेध, किनके साथ विहार करना और किनके साथ नहीं करना इसका निरूपण, वर्षाकाल में या वर्षा में विहार करने का निषेध, अशिवादि में भी बिहार करना, वर्षा की समाप्ति में विहार करना, मार्ग में युगमात्र देखते हुए जाना चाहिये, नदी के पार जाने में विधि, प्राचार्य के साथ जाते हुए साधू को विधि, साधुओं का और साधियों का रात्रि में या विकाल में विहार करने का विचार इत्यादि विषय द्रष्टव्य हैं। १०-'वीर' शब्द पर वीरशब्द की व्युत्पत्ति, और कथा देखना चाहिये। ___षष्ठ नाग में जिन जिन शब्दों पर कथा या उपकथायें आई हुई हैं उनकी संक्षिप्त नामावली'मनि' 'महापारिकतर' 'मुणिसुब्बय' 'मूलदत्ता' 'मूलसिरी' 'मेहघोस' 'मेहपुर ' 'मेहमुह ' 'मेहरिपुत्त' 'रहणमि' 'रोहिणी' 'रोहिणेयचोर' बद्धमाणमूरि' 'वररुइ' वराहमिहिर' 'वरुण' 'ववहारकुसल' 'वाणारसी' 'विजइंदररि' विजयकुमार' 'विजयघासे 'विजयचंद' 'विजयतिलकसरि' 'विजयसेट्ठि' 'विजयसेण' 'विणयंधर' 'बिसेसएणु' 'वीर'। सप्तम नाग में माये हुए कतिपय शब्दों के संक्षिप्त विषय१-'संथार' शब्द पर संस्तार का विचार है । 'संबर' शब्द पर सम्बर का निरूपण है । 'संसार' शब्द पर संसार की असार दशा दिखाई गई है। २- सक' शब्द पर शक की वृद्धि और स्थान, विकुर्वणा, और पूर्वभव, शक्र का विमान, भौर शक किस भाषा को बोलते हैं इसका निरूपण और शक की सामर्थ्य प्रादि वर्णित है। ३- सज्झाय' शब्द पर स्वाध्याय का स्वरूप, स्वाध्यायकाल, स्वाध्यायविधि, स्वाध्याय के गुण, स्वाध्याय के फल इत्यादि विषय हैं, तथा 'सत्तभंगी' शब्द पर सप्तभङ्गी का विचार है। ४-'सह' शब्द पर शब्द का निर्वचन, नामस्थापनादि भेद से चार भेद, बौद्धों के अपोहवाद का खण्डन, नित्यानित्य विचार, और शब्द का पौद्गलिकत्व, शब्द के दश भेद, मनोज्ञ शब्दों के सुनने का निषेध, शब्द के माकाश गुणत्व का खण्डन इत्यादि विषय हैं। ५-'सावय' शब्द पर श्रावक शब्द की व्युत्पत्ति और अर्थ, श्रावक के लक्षण श्रावक का सामान्य कर्त्तव्य, निवासविधि, श्रावक की दिनचर्या, श्रावक के २१ एकविंशति गुण इत्यादि विषय हैं। ६-' हिंसा' शब्द पर हिंसा का स्वरूप, वैदिक हिंसा का खण्डन, षड्जीवनिकायों की हिंसा का निषेध, जिनमन्दिर बनवाने में प्राते हुए दोष का परिहार इत्यादि अनेक विषय हैं। ७ -' हेउ' शब्द पर हेतु के प्रयोगप्रकार, कारक और ज्ञापक रूप से हेतु के दो भेद इत्यादि विषय द्रष्टव्य हैं। सप्तम नाग में जिन जिन शब्दों पर कथा या उपकथायें आई हुई हैं उनकी संक्षिप्त नामावली'संखपुर' संजय ' 'संतिदास' 'संतिविजय' 'सकह ' 'सत्त' 'समुद्दपाल' 'सयंभूदत्त' 'सावत्थी' 'सावयगुण' 'सिंहगिरि ' ' सीलंगायरिय' 'सीह ' ' सुकण्हा' 'सुक' 'सुग्गीव ' ' सुजसिरी' 'सुमित्र' 'सुट्ठिय' 'सुणंद ' 'सुणक्खत्त' 'सुदंसण' 'सुदक्खिण' 'सुपासा' 'सुप्पभ' 'सुभद्द' 'सुभूम' 'सुमंगल' 'सुमंगला' 'सुधय' 'सूर' 'सेणिय'' सोमचंद' ' सोमा' 'हरिएस''हरिभद्द'' इत्यादि शब्दों पर कथाएँ द्रष्टव्य हैं। - :0- इस तरह से सातो भागों की यह अत्यन्त संक्षिप्त सूची समझना चाहिये, विस्तार तो ग्रन्थ से ही मालूम होगा क्योंकि भूमिका में विशेष विस्तार करके पाठकों का समय व्यर्थ नष्ट करना है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016041
Book TitleAbhidhan Rajendra kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherAbhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
Publication Year1986
Total Pages1064
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size38 MB
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