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________________ ( १६ ) ३- ' पज्जुसणाकप्प' शब्द पर पर्युषणा कब करना, पर्युषणास्थापना, भाद्रपदपञ्चमीविचार, क्षेत्रस्थापना, भिक्षाक्षेत्र, संखडि, एकनिर्ग्रन्थी के साथ नहीं ठहरना, अगारी के साथ नहीं ठहरना, इच्छा से अधिक नहीं खाना, शय्यासंस्तार, उच्चारप्रस्रवणभूमि, पर्युषणा में केशलोच, उपाश्रय, दिगवकाश इत्यादि देखने के योग्य हैं । ४ - ' पडिक्कमण' शब्द पर प्रतिक्रमण शब्द का अर्थ, प्रतिक्रामक, नामस्थापनाप्रतिक्रमण, प्रतिक्रान्तव्य के पाँच भेद, प्रतिक्रमण, दैवसिकप्रतिक्रमण वेला, रात्रिकप्रतिक्रमण, पाक्षिकादिकों में प्रतिक्रमण, पाक्षिक प्रतिक्रमण चतुर्दशी ही में होता है, मङ्गल, त्रैकालिक प्राणातिपातविरति, श्रावक के प्रतिक्रमण में विधि इत्यादि बहुत विषय हैं। ५- ' पडिमा ' और ' पडिलेहणा ' शब्द देखने चाहिये । ' पडिसेवणा ' शब्द पर प्रतिसेवना शब्द का अर्थ, और भेद आदि का बहुत विस्तार है। ६- ' पत्त' शब्द पर पात्र का लेपकरणादिक देखना चाहिये । ७- 'माण' शब्द पर प्रमाण का स्वरूप, प्रमाण का लक्षण, स्वतः प्रामाण्यविचार, प्रमाण संख्या, प्रमाणफल, द्रव्यादिप्रमाण आदि विषय हैं । ८-' परिग्गह ' शब्द पर परिग्रह के दो भेद, मूर्च्छापरिग्रह आदि अनेक भेद द्रष्टव्य हैं । ६- 'परिट्ठवण' शब्द पर परिष्ठापना विधि, पृथ्वीकायपरिष्ठापना, अशुद्ध गृहीत आहार की परिष्ठापना, कालगत - साधु की परिष्ठापनिका इत्यादि अनेक विषय हैं । १०- ' परिणाम' शब्द पर परिणाम की व्युत्पत्ति और अर्थ, जीवाजीव के परिणाम, नैरयिकादिकों का परिणाम विशेष, स्कन्ध और पुद्गलों का परिणामित्व, देवताओं का बाह्यपुद्गलों को ले करके परिणामी होने में सामर्थ्य, पुद्गलपरिणाम, वर्ण गन्ध रस स्पर्श के संस्थान से पुद्गल परिणत होते हैं, पुद्गलों का प्रयोग परिणतहोना, दण्डक, जीव का परिणाम, मूलप्रकृति का महदादिपरिणाम, स्वभावपरिणाम, परिणाम के अनुसार से कर्मबन्ध, आकारबोध और क्रिया के भेद से परिणाम इत्यादि विषय द्रष्टव्य हैं । ११- ' पवजा ' शब्द पर प्रव्रज्या का अर्थ और व्युत्पत्ति, प्रव्रज्या के पर्याय, दीक्षा का तस्व. किससे किसको प्रव्रज्या देना, किस नक्षत्र और किस तिथि में दीक्षा लेनी. दीक्षा में अपेक्ष्य वस्तु, दीक्षा में अनुराग आदि, लोकविरुद्धत्याग, सुन्दरगुरुयोग, समवसरण में विधि, पुष्पपात में दीक्षा, वासक्षेपादिरूप दीक्षासामाचारी, दीक्षा किस प्रकार से देना, चैत्यवन्दन, प्रव्रज्याग्रहण में सूत्र, और उसके पालन में सूत्र, प्रव्रज्या में विधि, गुरु से अपना निवेदन, दीक्षा की प्रशंसा, जिसतरह साधर्मिकों की प्रीति हो वैसा चिह्न धारण करना, दीक्षाफल, प्रव्रजित का आर्यिकाओं के द्वारा वन्दन, प्रत्रजित को ऐसा उपदेश करना जिसमें अन्य भी दीक्षा लेले, परीक्षा करके प्रत्राजन, एकादशप्रतिपन्न श्रावक को दीक्षा देना, पण्डक ( क्लीब ) आदि को दीक्षा नहीं देना इत्यादि अनेक विषय है । १२ - ' पुढवीकाइय' शब्द पर पृथिवीकायिक की वक्तव्यता स्थित है । १३- ' पोग्गल ' शब्द पर पुद्गल शब्द की व्युत्पत्ति और अर्थ, पुद्गल का लक्षण, पुद्गल भिदुरधर्मवाले हैं, परमाणु का पुल से अन्तर इत्यादि विषय देखने के योग्य हैं । १४-' बन्ध' शब्द पर बन्धमोक्षसिद्धि, बन्ध के भेद, द्रव्यबन्ध और भावबन्ध, प्रेमद्वेषबन्ध, अनुभागबन्ध, बन्ध में मोदक का दृष्टान्त, ज्ञानावरणीयादि कर्मों का बन्ध इत्यादि अनेक बातें हैं । १५ - ' भरह ' शब्द पर भरत वर्ष का स्वरूपनिरूपण, दक्षिणार्द्ध भरत का निरूपण, और वहाँ के मनुष्यों का स्वरूप, भरत के सीमाकारी वैताढ्य गिरि का स्थाननिर्देश, और इसके गुहाद्वय का निरूपण, तथा श्रेणि और कूटों का निरूपण, उत्तरार्द्ध भरत का निरूपण, भरत इस नाम पड़ने का कारण, तदनन्तर राजा भरत की कथा है । १६- ' भावणा ' शब्द पर भावना का निर्वाचन, प्रशस्ताप्रशस्त भावना का निरूपण, मैत्र्यादि भावनाओं के चार भेद, सद्भावना से भावित पुरुष को जो होता है उसका निरूपण इत्यादि विषय आये हैं । पञ्चम जाग में जिन जिन शब्दों पर कथा या उपकथायें आई हुई हैं उनकी संक्षिप्त नामावली - 94 पुढविचंद, ' ' फासिंदिय, ' 'पापरीसह, पउम सेह, ' 'पउमावई, '' पउमसिरी, ' ' पउमभद्द, ' 'पउमद्दह, 94 बंधुमई, ''भद्द, भद्दणंदिन्, ' 'भरह, ' ' भीमकुमार ' । Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016041
Book TitleAbhidhan Rajendra kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherAbhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
Publication Year1986
Total Pages1064
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size38 MB
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