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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 26 असोगलया असोगलया (अशोकलता) अशोका, अशोक रोहिणी ओ० ११ जीवा० ३५८४। देखें असोग (अशोका) शब्द। Aam AMAN असोगवण असोगवण (अशोक वन) अशोक का वन रा० १७० जीवा० ३१३५८ अस्सकण्णी अस्सकण्णी (अश्वकर्णी) साल भ० ७६६ जीवा० १७३ उत्त० ३६९९ देखें असकण्णी शब्द। अस्सत्थ अस्सत्थ (अश्वस्थ) पीपल देखें आसोत्थ शब्द। ठा० १०१८२।१ उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय पहाड़ की ९००० से १५००० फीट ऊंची चोटियों पर काश्मीर से सिक्कम तक बहुत उत्पन्न होती है। विवरण-इसका क्षुप रोमश होता है। इसका भौमिक तना बहुवर्षायु छोटी उंगली के समान मोटा एवं ६ से १० या १२ इंच तक लंबा होता है। पत्ते २ से ४ इंच लंबे, सुवाकार, जड़ की ओर संकुचित आगे की ओर चौड़े, किंचित्, चिकने और कटे हुए झालदार किनारे वाले होतेहैं। क्षुप के बीच से एक डंडी निकलती है, जिसके अंत में फूलों के गुच्छे लगते हैं। फूल नीले या सफेद रंग के आते हैं। फली चौथाई इंच की होती है। कुटकी इस क्षुप के मूल को कहते हैं। (भाव०नि० हरीतक्यादिवर्ग पृ०७०) आढई आढई (आढकी) अरहर प० १६३७१ आढकी के पर्यायवाची नाम - आढकी तुवरी तुल्या, करवीरभुजा तथा। वृत्तबीजा पीतपुष्पा, श्वेता रक्ताऽसिता॥८२॥ तुवरी, करवीरभुजा, वृत्तबीजा, पीतपुष्पा ये आढकी के पर्याय है। (धन्व० नि० ६८२ पृ० २६९) अन्य भाषाओं के नाम - हि०-अरहड़, अडहर, रहर, रहरी, रहड़, तूर। बं०आहरी, अडर। मं०-तुरी, तूर। गु०-तुरदाल्य, तुवर। क०तोगारि। ते०-कंदुलु। ता०-तोवरै। फा०-शारवल। अ०शाखुल, शांज। अं०-Pigeon Pea (पीजन पी) Red gram (रेडग्राम)।ले०-cajanus Indicusng (केजेनस इन्डीकस) Fam. Leguminosae (लेग्युमिनोसी)। असोगलता असोगलता (अशोक लता) अशोका, अशोक रोहिणी जं० २।११ १० ११३९।१ देखें असोग (अशोका) शब्द। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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