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________________ 24 जैन आगम : वनस्पति कोश अन्य भाषाओं में नाम - हैं। इसीलिए इसको ताम्रपल्लव कहते हैं। बसन्त ऋतु में इस पर हि०-अशोकाबं०-अशोकाम०-अशोकागु०-अशोक। फूल तथा शरद् में फल आते हैं। पुष्प सघन गुच्छों में आते क०-अशोक। ता०-अचोकम्। ले०-Saraca Indica ___ हैं और वे नारंगी रंग से लेकर अत्यन्त रक्तवर्ण तक परम Linn (सराका इन्डिका) Fam. Leguminosae सुहावने होते हैं। इसमें कोणपुष्पक एवं बाह्यदल रंगीन होते (लेग्युमिनोसी)। हैं। बाह्य दल ४ तथा आयताकार होते हैं। आभ्यन्तर दल नहीं रहते। पुंकेशर ७ से ८ करीब १ इंच लंबे एवं गहरे लाल रंग के होते हैं। फलियां ६ से १० इंच तक लंबी, चिपटी १ से डेढ़ इंच चौड़ी तथा दोनों सिरों पर कुछ-कुछ टेढ़ी होती हैं। प्रत्येक फली में ४ से ८ तक बीज रहते हैं। बीज १ से डेढ़ इंच लंबे एवं कुछ चिपटे रहते हैं। (भाव० नि० पुष्पवर्ग पृ० ५०१) INS उत्पत्तिस्थान-यह मध्य और पूर्वी हिमालय, पूर्व बंगाल और दक्षिण भारत में पाया जाता है तथा अनेक प्रकार की वाटिकाओं में भी देखने में आता है। बंगाल में इसका अधिक आदर है और प्रायः वहां के सब वाटिकाओं में देखा जाता है। विवरण-इसका वृक्ष बड़ा सीधा और झोपडाकार होता है। तथा यह बारहों मास हरा भरा दिखाई पड़ता है। लकड़ी हलकी किंचित् लाली युक्त भूरे रंग की होती है। पत्ते सम पक्षवत् एवं पत्रक पतली-पतली टहनियों पर ३ से ६ जडे रहते हैं और वे ३ से ९ इंचलंबे आयताकार या आयताकार प्रासवत् चिकने, तीक्ष्ण या लंबाग्र एवं चर्मल होते हैं। नई-नई टहनियां नीचे की ओर झुकी हुई रहती हैं और उनके पत्ते अत्यन्त कोमल एक दूसरे से सटे हुए तांबे के रंग के लाल मनोहर दिखाई देते असोग असोग (अशोका) कुटकी, अशोक रोहिणी लता। जीवा० ३१५८४ जं० २।११ प० १।३९।१ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में असोग शब्द लता वर्ग के अन्तर्गत प्रयुक्त हुआ है। अशोकरोहिणी लता है उसका संक्षिप्तरूप अशोक है। संस्कृत भाषा में इसका एक नाम अशोका है। अशोका के पर्यायवाची नाम - कट्वी तु कटुका तिक्ता, कृष्णभेदा कटम्भरा ॥१४॥ अशोका मत्स्यशकला, चक्राङ्गी शकुलादनी॥ मत्स्यपित्ता काण्डरुहा, रोहिणी, कटुरोहिणी ॥१५॥ कट्वी, कटुका, तिक्ता, कृष्णभेदा, कटम्भरा, अशोका, मत्स्यशकला, चक्राङ्गी, शकुलादनी, मत्स्यपित्ता, काण्डरुहा। रोहिणी और कटुरोहिणी ये सब कुटकी के संस्कृत नाम हैं। (भाव० नि० हरीतक्यादिवर्ग पृ०६९) अन्य भाषाओं में नाम - हि०-कुटकी, कटुकी, कटुका। बं०-कटकी। म०केदारकडू।ते०-कटुकुरोणी।क०-कटुकरोहिणी कटुकरोहिनी। ता०-कटुकुरोगणी। फा०-खब के हिन्दी। अ०-सर्व के अस्वद, खाने खस्वैल। अं०-Picrorhiza, (पिक्रोहाइझा)। ले०-Picrohiza Kurroa Royle ex Benth (पिकरोह्राइझा कुरों) Fam. Serophulariaceae (स्करोफ्युलॅरियासी)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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