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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 305 जया, अव्यथा, हैमवती, वयःस्था, चेतकी, शिवा, प्राणदा, वाटिकाओं में भी रोपण करते हैं। नन्दिनी, रोहिणी, विजया ये हरीतकी के पर्यायवाची नाम विवरण-प्रायः इसका वृक्ष मध्यमाकार का होता (धन्व०नि०१/२०५ पृ०७६,७७) है किन्तु कहीं-कहीं बड़े-बड़े वृक्ष भी देखे जाते हैं। नर्मदा अन्य भाषाओं में नाम के दक्षिण के १०० फीट तक ऊंचे होते हैं। हरीतकी के हि०-हर, हरड, हरे, हर्ड, हरर | बं०-हरीतकी, वृक्ष वट, पीपल आदि वृक्षों की तरह दीर्घायु नहीं होते बालहरीतकी, नर्रा, हरीतकीगाछ। म०-हरडा, हिरडा, हैं बल्कि कालान्तर र गिर जाया करते हैं। हरडी, बालहरडी। गु०-हरेडे, हिमज। तेल-करक। इसकी छाल कालापन युक्त भूरे रंग की चौथाई इंच तक चेटु, करकाप्प, करक्काय । ता०-कडुकाय, करकैया, मोटी होती है। टहनियों पर पत्ते सघन नहीं रहते बल्कि कडुकेमरम। क०-अणिलेय, अणिले, अनिलैकाय।। न्यूनाधिक विपरीत रहते हैं। पत्ते अडूसे के पत्तों से कुछ उडी०-कर्रथा, हरिडा, करेडा। द०-हलरा, कलरा। चौड़े, महुओं के पत्तों के समान, ४ से ८ इंच तक लम्बे, मा०-हरडे। पं०-हड,हरड। आसा०-हिलिखा, किंचित् अंडाकार, नोकदार, सफेदी युक्त हरे और सिल्लिका। लिपचा०-सिलिम। सिक्कम०-हन, चमकदार होते हैं तथा स्पर्श से खुरदरे जान पड़ते हैं। सिलिमकंग। मैसूर०-अलले। कच्छार०-होरतकी। वृन्त १ इंच से कम एवं उसके अग्रभाग के ऊपरी पृष्ठ फा०-हलेलज अस्फर, हलैजर्द। अ०-अहलीलज़ पर दो या अधिक सूक्ष्म ग्रंथियां पाई जाती हैं। वसंत ऋतु कावली। अंo-Myrobalans (माईरोबेलन्स) Chebula में पुराने पत्ते गिरकर नवीन पत्ते निकल आते हैं। फूल Myrobalans (चेब्युलिक माईरोबेलन्स)|ले०-Terminalia वारीक आम की मंजरी के समान दिखाई देते हैं और chebula Retu (टर्मिनेलिया चेब्युला) Fa. Combretaceae वे देखने में सफेदी मायल या कुछ पीले रंग के होते हैं (कॉम्ब्रिटेंसी)। तथा उनमें दुर्गन्ध आती है। फल किंचित् लम्बाई युक्त गोलाकार होते हैं। सूखते सूखते छिलके सिकुड़ जाते हैं और पांच कोणाकार या पांच रेखायुक्त दिखाई देने लगते हैं। हरीतकी के फल पकने पर वृक्ष में बहुत कम ठहरते हैं। (भाव०नि० हरीतक्यादि वर्ग०पृ०७.८) हरतणुया हरतणुया (हरेणुका) रेणुका, संभालू का बीज प०१/४८/६ विमर्श-भगवती सूत्र २३/८ में हरतणुया के स्थान उत्पत्ति स्थान-इसका वृक्ष हमारे देश के प्रायः सब __पर हरेणुया पाठ है |आचार्य हेमचंद्र की प्राकृत व्याकरण प्रान्तों में कहीं न कहीं पाया जाता है। उत्तर भारत में १/१६५ से १६६ तक सूत्रों के अनुसार आदिस्वर को आगे । बहुलता से उत्पन्न होती है। कुमाऊं से बंगाल तक, के सस्वर व्यंजन सहित ए आदेश होता है। प्रस्तुत प्रकरण आसाम, ब्रह्मा तथा दक्षिण में मद्रास प्रान्त, कोयम्बटूर, में द्वितीय स्वर 'र' तथा आगे के सस्वर व्यंजन (त) को कनारा, पश्चिम घाट के पूर्वीय प्रान्तों में, गञ्जाम एक आदेश होने से हरेणुया रूप बनता है। गोदावरी की तलहटी, सतपुरा पहाड़, गुजरात, बम्बई हरेणुका के पर्यायवाची नामप्रान्त के घाटों के पास ऊंचे जंगलों में, कोंकण, मलावार, रेणुका राजपुत्री च, नन्दिनी कपिला द्विजा। विन्ध्याचल पहाड़, हिमालय पहाड़ एवं कबूल की ओर भस्मगंधा पाण्डुपुत्री, स्मृता कौन्ती हरेणुका।। इसके वृक्ष अधिकता से देखने में आते हैं। इसका रेणुका, राजपुत्री, नन्दिनी, कपिला, द्विजा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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