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________________ 306 जैन आगम : वनस्पति कोश भस्मगंधा, पाण्डपुत्री, कौन्ती, हरेणुका-ये सब पर्यायवाची किया है। प्रस्तुत प्रकरण में यह शब्द हरितवर्ग में है। शब्द रेणुका के हैं। (भाव०नि० कर्पूरादिवर्ग पृ०२५१) दोनों का शाक होता है इसलिए यहां दोनों ही अर्थ ग्रहण अन्य भाषाओं में नाम किए जा रहे हैं। हि०-रेणुका, रेणुक, संभालू का बीज । गु०-हरेणु । म०-रेणुकबीज । इरा०-पंजनगुस्त। अ०-अथलक् । हरितग ले०-Vitex agnus castus linn (वाइटेक्स् एग्नस् कास्टस् लिन०) Fam. Verbenaceae (ह्वर्बिनॅसी)। हरितग (हरित) श्वेतसहजन शाक उत्पत्ति स्थान-यह बलूचिस्तान, अफगानिस्तान, भ०२१/२० प०१/४४/१ पश्चिम एशिया, भूमध्यसागरीय प्रदेश आदि प्रदेशों में हरितशाकः ।पुं। शिशाके। होता है। देहरादून के वैज्ञानिक बाग में यह लगाया हुआ (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०११८५) विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में हरितग शब्द हरितवर्ग विवरण-इसका गुल्म या वृक्ष होता है, जिसकी। में है। इसलिए शाक वाचक अर्थ ग्रहण किया जा रहा शाखायें चौपहल होती हैं। पत्ते लम्बे पत्रनाल से युक्त, __ है। हरितशाक शब्द सहजन का वाचक है ऊपर दो अर्थ करतलाकार संयुक्त, पत्रक पांच, कभी-कभी सात भी, ___ अदरख और वनतुलसी ग्रहण किए गए हैं। दोनों शाक भालाकार और लम्बे नोक वाले होते हैं। फल साधारण हैं। यहां सहजन अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। मटर के बराबर, अंडाकृति तथा धूसरवर्ण के होते हैं। हरितशाक के पर्यायवाची नामबाह्यदल एवं वृन्त इसमें लगा रहता है। ये फल बहुत शिग्रु हरितशाकश्च दीर्घको लघुपत्रकः । कड़े रहते हैं तथा काटने पर इसके अन्दर ४ खंड अवदंशक्षमो दंशः, प्रोक्तो मूलकर्ण्यपि।।३६ ।। दिखलाई देते हैं, जिनमें एक-एक छोटा चिपटा बीज शोभाअनस्तीक्ष्णगंधो, मुखभङ्गोऽथ शिग्रुकः रहता है। भारतीय निर्गुण्डी के फल से ये फल करीब श्वेतक: श्वेतमरिचो, रक्तको मधुशिग्रुकः ।।३७।। आधे छोटे होते हैं। हरितशाक, दीर्घक, लघुपत्रक, अवदंशक्षम, दंश, (भाव०नि० कर्पूरादिवर्ग० पृ०२५२) मूलकपर्णी शोभाअन, तीक्ष्णगन्ध, मुखभङ्ग और शिग्रुक ये शिग्रु के पर्यायवाची नाम हैं। श्वेतशिग्रु को श्वेतमरिच और रक्तशि को मधु हरितग शिग्रुक कहते हैं। (धन्व०नि०४/३६,३७ पृ०१८६) हरितग (हरितक) अदरख आदि शाक अन्य भाषाओं में नामवनतुलसी १/२० प०१/४४/१ हि०-सहिजना, सहिजन, सहजन, सहजना हरितकम् ।क्ली० ।शाके आर्द्रकादौ। सैजन, मुनगा। बं०-सजिना। म०-शेवगा, शेगटा। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०११८५) मा०-सहिजनो, सहिंजणो। क०-नुग्गे। तेo-मुनग। हरितक ।पुं। कुठेराद्यः शाकवर्गः। गु०-सेकटो, सरगवो। ता०-मोरुङ्गै, मुरिणकै । पं०-सोहजना । मला०-मुरिण्णा । ब्राह्मी०-डोंडलो बिन। (आयुर्वेदीय शब्दकोश पृ०१७०६) कुठेर- पुं। तुलसी। वन तुलसी। यू०-सिनोह। फा०-सर्वकोही। अं0-Horse Radish (शालिग्रामौष धशब्दसागर पृ० ३७) । Tree (हार्स रेडीश ट्री)। ले०-Moringaptery gosperma विमर्श-वैद्यक शब्द सिंध में हरितक शब्द का अर्थ gaertn. (मोरिङ्गा टेरीगोस्मगिट)। Fam. Moringaceae अदरख आदि किया है, जबकि आयुर्वेदीय शब्दकोश तथा (मारिगसी)। शालिग्रामौषधशब्दसागर में तुलसी (वन तुलसी) अर्थ उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय के निचले प्रदेशों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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