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________________ 304 जैन आगम : वनस्पति कोश होते हैं। इसके क्षुपों की वृद्धि प्रायः रुके हुए जल वाले तालाब, कूप या गड्डों में बहुत शीघ्र होती है। कूपों में जलशुद्धि के लिए इसे डाल देने से यह शीघ्र ही जल पर छा जाती है। इसकी अत्यधिक वृद्धि से जल विकृत भी हो जाता है। अतः इसे बार-बार निकालकर बाहर कर देते हैं। इसकी जड़े श्वेत तन्तयक्त होती है। इसके दो भेद हैं। बड़ी को जलकुम्भा और छोटी को जलकुंभी कहते (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ३ पृ०१८६,१८७) हत्थिपिप्पली हत्थिपिप्पली (हस्तिपिप्पली) गजपीपल उत्त०३४/११ गजपिप्पली के पर्यायवाची नाम चविकायाः फलं प्राज्ञैः, कथिता गजपिप्पली। कपिवल्ली कोलवल्ली, श्रेयसी वशिरश्च सा।।६६ ।। चव्य के फल का ही नाम गज पीपल है। ऐसा वैद्य लोग कहते हैं। कपिवल्ली, कोलवल्ली, श्रेयसी, वशिर ये सब गजपिप्पली के पर्यायवाची नाम हैं। (भाव०नि०हरितक्यादि वर्ग० पृ०२१) गजपीपल म०-गजपिंपली, थोरपिंपली। क०-अनेबीलुबल्लि । गु०-मोटोपीपर । ते०-एनुगा पिप्पल । त०-अनै तिप्पली। पं०-गजपीपल। सन्ताल०-दरेझपक। मल०-अति तिप्पली, अनैतिप्पली। ले०-Scindapsus Officinalis Schott (सिन्डेप्सस् ऑफिसिनेलिस् स्काट)। Fam. Araceae (अॅरासी)। उत्पत्ति स्थान-इसकी लता आर्द्र सपाट मैदानों में, हिमालय के प्रान्तों में सिक्कम से पूर्व की ओर बंगाल, चट्टगांव ब्रह्मा तथा सिवालिक के जंगलों में शाल वक्षों पर चढी हुई पाई जाती है। विवरणरा-इसका डंठल गूदेदार एक इंच या इससे भी अधिक मोटा एवं गोल होता है। पत्ते बड़े-बड़े, ५ से १० इंच तक लम्बे और २.५ से ६ इंच तक चौड़े, अंडाकार गाढे हरे होते हैं और शाखाओं पर विपरीत रहते हैं। पत्रवृन्त ३ से ६ इंच तक लम्बा और अंत का हिस्सा हाथ की कोहनी से समान होता है एवं तलवार की म्यान के समान दिखाई पड़ता है। इसके भीतर का हिस्सा पीले रंग का होता है। फल रसयुक्त, गूदेदार लगभग ६ इंच लम्बा, १.२५ से १.५ इंच व्यास में और नीचे की ओर लटका हुआ रहता है। इसके आगे का हिस्सा नोकदार होता है। इनमें गंध नहीं रहती तथा उन्हें जल में भिगोकर रखने से ये फूल कर नरम हो जाते हैं। इनके बीच में बीज होते हैं और उनके चारों ओर चूने के सूई के समान दाने होते हैं। बीज वृक्काकार, चिकने गांजे के बीज से बड़े और भूरे रंग के होते हैं। इसके पत्ते का शाक बनाकर खाते है। (भाव०नि० हरितक्यादिवर्ग०पृ०२१) M ithe.. . LEONEHATO .. गजपिप्पलीनामानि हरडय हरडय (हरीतकी) हरड, हर्रे प०१/३५/२ विमर्श-हरड शब्द मराठी, गुजराती और मारवाड़ी भाषा का शब्द हैं। संस्कृत भाषा में हरीतकी शब्द है। हरीतकी के पर्यायवाची नाम हरीतक्याभया पथ्या, प्रपथ्या पूतनाऽमृता जयाव्यथा हैमवती, वयःस्था चेतकी शिवा।।२०५।। प्राणदा नन्दिनी चैव, रोहिणी विजया च सा। हरीतकी, अभया, पथ्या, प्रपथ्या, पूतना, अमृता, AWANI अन्य भाषाओं में नाम हि०-गजपीपर, गजपीपल। बं०-गजपीपल। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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