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________________ जैन आगम वनस्पति कोश मूर्वा, मधुरसा, देवी, गोकर्णी, दृढसूत्रिका, तेजनी, पीलुपर्णी, धनुः माला, धनुः गुणा (मोरटा, स्रवा मधुलिका, धनुःश्रेणी, कर्मकरी, धनुःशाखा, श्रवा मूर्वी, मधुश्रेणी, धनुश्रेणी, सुरङ्गिका, देवश्रेणी पृथक्त्वचा, मधुस्रवा अतिरसा, पीलुपर्णिका, दिव्यलता, ज्वलिनी, गोपवल्ली) (शा०नि० गुडूच्यादि वर्ग० पृ० ३३१) मूर्वा नं. १ CLEMATIS TRILOBAHEYNE EXROTH पुष्प शाख Jain Education International எ अन्य भाषाओं में नाम हि० - मोरबेल, चूरनहार, मूर्वा, धन्तियाली, मुरहरि, मरोडफली । बं० - मोरविल, मुहुरासि । गु०- मोरबेल । ता० - भूमिचक्करे, मरुल । ते०-चांग चेट्टु, सगजग । क० - नाड़ी मोरहरी, अमरवालि । म० - गुलवेलि, रानजाई । सिं० - मरुवा | गौ० - मूर्वा, मूर्गासुरहर, सोचखी मुखी, चोड़ाचक | ले०-Clematis Triloba (क्लिमेटीज ट्राइलोवा) (राज० नि० पृ० ३२ धन्व० वनौ० विशे० भाग ५ पृ० ४१७) उत्पत्ति स्थान- दक्षिण के पहाड़ों पर, मध्य प्रदेश, पश्चिमी कोंकण में, गुजरात, काठियावाड के पहाड़ी प्रदेशों, झाड़ी वाले स्थानों में उगता है। दक्षिण के कोंकण 293 में विशेष होता है । विवरण - यह वत्सनाभादि कुल की एक लता है । इसकी लता दूर तक बढ़ती है। यह द्राक्षा के समान वृक्ष पर चढ़ने वाली बेल है। तीन खण्ड युक्त है। उत्पत्ति वर्षा ऋतु में नया भाग रेशम सदृश मुलायम, रुयें से आच्छादित । तना धारीदार । पान १ से २ इंच के घेरे में, अंडाकार, हृदयाकार, गोलाकार अनीदार, कंगूरेदार, तीन नस वाला। तीन पान साथ में और रेशम के समान कोमल होता है । पान आमने सामने आये हुए होते हैं। पत्रदंड पौन इंच से तीन इंच या इससे भी लम्बे होते हैं। पत्रदंड के सिरे से तीन उभी या सीधी नसें निकल कर गई हुई होती है। पान १ से २.५ इंच लंबे और ३/४ से १.५ या २.५ इंच चौड़े होते हैं। फूल धारण करने वाली शाखायें विशेषकर पत्रकोण से निकली हुई होती हैं। इन पर रोयें बहुत आये हुए होते हैं। पुष्प पत्र विशेष करके पान जैसे होते हैं। फूल चमेली के फूल जैसे सफेद यथार्थ में अनेक रंग के १.५ से २ इंच व्यास के होते हैं। फल -- गोलाकार लगते हैं। बीज फल के सदृश, अंडाकार, दबा हुआ, मुलायम, रुयेंदार और लंबी पूंछ सह । कांड और शाखा भूरे लाल रंग के फीके हरे, रेखा युक्त । मूल लंबा उपमूल युक्त । ( धन्व० वनौ० विशे० भाग १ पृ० ४१६ ४१७ ) सुगंधिय सुगंधिय (सुगन्धिक) चंद्र विकासी नील कमल । प०१/४६ सुगन्धिकम् ।क्ली० । कह्वारे । ( वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०११२६) विमर्श - निघंटुओं में सुगन्धिक शब्द नहीं मिलता है । सौगन्धिक शब्द इसी अर्थ में मिलता है । सौगन्धिक के पर्यायवाची नाम सौगन्धिकं तु कल्हारं, हल्लकं रक्तसन्ध्यकम् ।। सौगन्धिक, कल्हार, हल्लक और रक्तसन्ध्यक ये सब कल्हार (लाल कुमुद) के पर्यायवाची शब्द हैं। ( भाव० नि० पुष्पवर्ग० पृ०४८४) सौगंधिक - यह चंद्र विकासी कमल अतिनील तथा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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