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________________ 292 सीहकण्णी सीहकण्णी (सिंहकर्णी) अरडूसा भ०७/६६ : २३/२ जीवा ०१ / ७३ ५०१ / ४८/१ उत्त०३६/६६ सिंहकर्णी के पर्यायवाची नाम वासिका सिंहकर्णी च, वृषो वासा च सिंहिका ।। आटरूषः सिंहमुखी भिषग्माताऽटरूषकः ।। वासिका, सिंहकर्णी, वृष, वासा, सिंहिका, आटरूष, सिंहमुखी, भिषग् माता, आटरूषग ये अरडूसा के संस्कृत नाम हैं। ( सटीक निघंटुशेष प्रथमो वृक्षकांड पृ०८८) विमर्श - लेखक ने पृ०८८ में ऊपर का श्लोक उद्धृत किया है। लेकिन प्रमाण निघंटु के लिए कोष्ठक खाली रखा है। देखें अट्टरूसग शब्द । सुंकलितण संकलितण ( ) शूकडितृण भ०२१/१६५०१/४२/२ शूकतृण (न०) तृण विशेष । शूकडितृण । (शालिग्रामौषधशब्द सागर पृ० १८५) विशेषे । हि० - शूकडि । ( वैद्यकशब्द सिन्धु पृ० १०६१) विमर्श - सुंकलितण शब्द का अर्थ शूकडितृण किया है वह हिन्दी भाषा का शब्द है । संस्कृत का शब्द शूकतृण है। सुंठ सुंठ ( ) सूंठ भ०२१/१६ ०१ / ४२/२ विमर्श - सुंठ शब्द महाराष्ट्री और गुजराती भाषा का है। हिन्दी बंगला और मारवाड़ी भाषा में सूंठ कहते । संस्कृत भाषा में इसके निकट का शब्द शुण्ठी है । शुण्ठी के पर्यायवाची नाम शुण्ठी विश्वा च विश्वच, नागरं विश्वभेषजम् । ऊषणं कटुभद्रश्च शृङ्गवेरं महौषधम् ।।४४ ।। शुण्ठी, विश्वा, विश्व, नागर, विश्वभेषज, ऊषण, कटुभद्र, शृंगवेर और महौषध ये सब सोंठ के नाम हैं । Jain Education International जैन आगम वनस्पति कोश (भाव०नि० हरीतक्यादिवर्ग० पृ०१२, १३) अन्य भाषाओं में नाम हि० - सोंठ, सौंठ, सूंठ, सिंघी। बं०-शुंठ, शुण्ठि, सुंट । म० - सुंठ | मा० - सूंठ । गु० - शंठ्य, सूंठ, सुंठ । सिंहली० - वेलिच इंगुरु । क०- - शुंठि, शोंठि, ओणसुठि, शुठि । ते० - शोंठी, सोंठी, सोंटि । ता०-शुक्कु । पं० - सुंड | मला० - चुक्क । ब्रह्मी० - गिन्सिखियाव । फा० - जंजबील, जजबीलखुश्क | अ० - जंजबीले आविस । अंo - Dry Zingiber (ड्राइजिंजिबेर ) Zinger ( जिंजर ) । ले० - Gingiber Officinale Roscoe (जिंजिबेर ऑफिसिनेल) Fam. Zingiberaceae (जिंजिबेरेसी) । विवरण- सुखाई आदी को सोंठ कहते हैं। सुखाने की विधि के अनुसार इसके स्वरूप में अंतर पाया जाता है । आदी को खूब स्वच्छ कर पानी या दूध में उबाल कर सुखाते हैं। प्रायः सोंठ दो प्रकार की होती है। एक रक्ताभ भूरी और दूसरी सफेद। चूने के साथ शोधन करने से यह सफेद तथा टिकाऊ हो जाती है। जिनमें रेशे बहुत कम होते हैं वह अच्छी समझी जाती है। (भाव० नि० हरीतक्यादिवर्ग० पृ०१३) COO सुंब सुंब (श्रुव) चूरन हार, मूर्वा भ०२१/१८ १०१/४१/१ श्रुवः |पुं । मूर्वायाम् (वैद्यक शब्द सिंधु पृ. ०१०७७) स्वनामख्यातलता। चूरनहार । मूर्वा - स्त्री । मरोडफली (शालिग्रामौषधशब्द सागर पृ० १४१ ) विमर्श - संस्कृत भाषा के श्रुव शब्द का प्राकृत में बबन सकता है। श्रुव के र का लोप कर अनुस्वार करने से सुंब बनता है । वैद्यक निघंटु कोश में श्रुव शब्द • मिला है। परन्तु हमारे पास उपलब्ध निघंटुओं में श्रुव शब्द नहीं मिला है। श्रवा या स्रवा शब्द मिलता है। इसलिए श्रुव शब्द का अर्थवाचक मूर्वा शब्द के पर्यायवाची नाम दे रहे हैं। मूर्वा के पर्यायवाची नाम मूर्वा मधुरसा देवी, गोकर्णी दृढसूत्रिका । तेजनी पीलुपर्णी च, धनुर्माला धनुर्गुणा ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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