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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 233 लगाई जाती है। तक कटे हुए एवं फलकमूल गहरा, हृद्वत् होता है । पुष्प विवरण-पुष्पवर्ग एवं अपने तुलसी कुल की प्रमुख श्वेत तथा मलाई के रंग के, समस्थ काण्डज व्यूह में आते इस दिव्य बूटी के गुल्मजातीय क्षुप १/२ फुट ऊंचे, हैं। फली कठोर ६ से १२ इंच लम्बी, १.५ से २ इंच चौड़ी शाखायें पतली छोटी सीधी फैली हुई, पत्र लगभग १ इंच एवं रोमश होती है। इसके पत्तों के पत्तल आदि बनाये लम्बे, कुछ कंगूरेदार गोल एवं सुगंधित पुष्पमंजरी ५ से जाते हैं. छाल के रेस्सों से रस्सियां बनाई जाती है। ६ इंच लम्बी, शाखाओं के अग्रभाग पर । बीज चपटे कुछ इसकी फलियों को आग में चिटका कर बीज निकाले लाल वर्ण के होते हैं। प्रातः शीतकाल में पुष्प एवं फल जाते हैं, जिन्हें खाते हैं। आते हैं। (भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग०पृ०४३६) श्वेत तुलसी के पत्र शाखाएं श्वेताभ और कृष्ण या काली के पत्रादि कृष्णाभ होते हैं। गुण धर्म की दृष्टि से मास काली तुलसी श्रेष्ठ मानी जाती है। मास (माष) उडद (धन्वन्तरिवनौषधि विशेषांक भाग ३ पृ०३५८) ठा०५/२०६ भग०२१/१५ उवा०१/२६ प०१/४५/१ माष के पर्यायवाची नाममालुया धान्यमाषस्तु विज्ञेयः, कुरुविन्दो वृषाकरः ।। मालुया ( ) मालुआ बेल प०१/४०/५ जीवा०३/२६६ मांसलश्च बलाढ्यश्च, पित्र्यश्च पितृजोत्तमः ।।७।। मालुः ।पुं । पत्रबहुललताभेदे। (वैद्यक शब्द सिन्धु ८१६) कुरुविन्द, वृषाकर, मांसल, बलाढ्य, पित्र्य और मालझन, मालआ बेल-संभवतः यही डल्हणोक्त पितजोत्तम ये धान्यमाष के पर्याय हैं। कोविदारयुग्मपत्रा वा अन्योक्त पृथकपर्णी है, जिसकी (धन्व०नि० ६/८७ पृ०२६१) बड़ी विस्तृत लतायें होती हैं तथा पत्ते कचनार जैसे द्विविभक्त होते हैं। (भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग० पृ०४३५) भाषाओं में नाम-सं०-कोविदार, युग्मपत्रा, पृथकपर्णी। हिo-मालझन, माहुल, मालो, महुलाइन। बं०-चेहुर । ते०-अड्डा । थाo-महुलन । खर-महुलान । संथा-लमकलर, गोमलर। उ०-सियालपत्ता। ले०Bauhinia vahlii W.&A (बौहिनिया वाहली) Fam. Leguminosae (लेग्युमिनोसी)। उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय के निम्न भागों में ३००० फीट तक एवं आसाम, मध्य प्रदेश तथा बिहार में नम एवं छायादार स्थानों में वृक्षों पर फैली हुई पायी जाती है। । S विवरण-इसकी लता बहुत बड़ी तथा आरोहणशील होती है। शाखाओं के अग्र पर प्रायः दो-दो सूत्र रहते हैं। नवीन शाखाओं, पत्रनालों एवं पत्तों के अधः पृष्ठों पर रक्ताभ या मखमली रोमावरण होता है। पत्ते १ से १५ फीट तक चौड़े, चौड़ाई में कभी-कभी अधिक नहीं हो तो लम्बाई-चौड़ाई में बराबर, द्विखण्डित, खण्ड गहराई अन्य भाषाओं में नाम हि०-उडद, उडिद, उरद, उरिद, उर्दी । बं०-माष, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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