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________________ 232 जैन आगम : वनस्पति कोश उत्पत्ति स्थान-यह लता भारत के उष्ण एवं मालुकः ।पुं०। कृष्णार्जके (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ८१६) समशीतोष्ण प्रान्तों के पथरीले जंगलों में तथा सिन्ध, म तथा सिन्ध, मालुक के पर्यायवाची नाम मा पंजाब, शिमला, देहरादून से लेकर अमेरीका के उष्ण कृष्णार्जकः कालमालः, मालकः कृष्णमालुक: १५६५ प्रदेशों में विशेष पाई जाती है। काकमली करालः स्यात्, कपित्थः कालमल्लिका। विवरण-गुडूची कुल की वृक्षों के सहारे ऊपर बर्बरी कवरी तुङ्गी, खरपुष्पाऽजगन्धिका ।।१५६६ ।। चढ़ने वाली या जमीन पर फैलने वाली इस लता की कृष्णार्जक, कालमाल, मालुक, कृष्णमालुक, शाखायें पतली, रेखा चिन्हित, चिकनी या मृदु, श्वेत काकमल्ली, कराल, कपित्थ, कालमल्लिका, बर्बरी, कवरी, रोमाच्छादित, पत्र गिलोय के पत्र जैसे एकान्तर, तुङ्गी, खरपुष्पा, अजगन्धिका ये बर्बरी के पर्याय हैं। हृदयाकृति के गोल, १.५ से ४ इंच व्यास के, लंबाई से (कैयदेवनिघंटु ओषधिवर्ग श्लोक १५६५, १५६६ पृ० ६३५, ६३६) चौड़ाई कुछ में अधिक, रोमश, मसलने पर चिपचिपे, गंध में सोया जैसे, स्वाद में कुछ रुचिकर, पत्रवृन्त लगभग २ से ४ इंच लंबा, पत्र की पीठ की ओर लगा हुआ, पत्र में शिरायें ७ से ११, पुष्प वर्षा या शरद्ऋतु में, पीताभ श्वेतवर्ण के उभय लिंग विशिष्ट, बहुत छोटे-छोटे, नर मंजरी लंबी अनेक पुष्पों से युक्त, मृदुरोमश, पत्रकोण से निकली हुई रहती है। प्रायः नरपुष्प गुच्छों मे तथा मादा पुष्प लंबे मंजरी में आते हैं। फल शीतकाल में मकोय या मटर जैसे किन्तु रोमश, कच्ची दशा में पीताभ हरित, पकने पर लाल या नारंगी रंग के कुछ गोलाई लिये हुए चपटे होते हैं। बीज वक्राकृति या मुडे हुए सूक्ष्म होते हैं। मूल आध इंच मोटी, जमीन में बहुत गहरी गई हुई । छाल फीके खाकी रंग की होती है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ४ पृ० २१५) मसरी PERH मालइकुसुम मालइकुसुम (मालती कुसुम) मालती के पुष्प पुष्प काट LJ RAMA उवा० १/२६ इदं नेत्रयोः स्पर्शनान्नेत्रशैत्यकरम्।। अन्य भाषाओं में नामनेत्रों के स्पर्श करने से नेत्र ठंडे होते हैं। हिo-तुलसी। बं०-तुलसी। मा०-तुलसी गु०__ (अष्टांग संग्रह सू ३३/६) तुलसी, तुलस। अंo-Holy Sacred, Basil (होली सेक्रेड वेसिल) ले०-Ocimum Sanctum (ओसियम सेंक्टम) 0. (आयुर्वेदीयशब्द कोश पृ० १०८८) मालती मल्लिका पुष्पं, तिक्तं जयति माहतम् Flirsutam (ओ० हिरसटम) 0. Tomentosum (ओ०, टोमेन्टोमस) 0. Viride (ओ० विरिडे)। (अष्टांगसंग्रह सूत्र स्थान द्वादशोध्यायः श्लोक ८० पृ० ११३) उत्पत्ति स्थान-भारतवर्ष में ही प्रायः सर्वत्र उष्ण एवं साधारण प्रदेशों के वनों, उपवनों में निसर्गतः होती मालुय है, एवं घरों, मंदिरों में भी प्रचुरता से पूजा कार्यार्थ तथा मालुय (मालुक) काली तुलसीभ० २२/२ प०१/३५/१ मलेरिया आदि रोगों के कीटाणु नाशार्थ वायुशुद्धि के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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