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________________ 190 जैन आगम : वनस्पति कोश अन्य भाषाओं में नाम एवं निश्चेष्ट हो जाता है। आंखें चिपक जाती हैं और शीघ्र हि०-पीले फूल का कनेर, पीली कनहल । बं०- प्रतिकार न किया जाय तो मृत्युवश हो जाते हैं। पीतकरवी, काल का फुलेर गाछ । म०-पीवला कन्हेर, (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ०६६) शेरानी, थिवटी। गु०-पीला कुल नी कनेर । अंo-The exile or yellow oleander (दि एक्झाइल या येलो पीयबंधुजीव ओलिएन्डर)। ले०-Thevetia Neriifolia (थेवेटिया पीयबंधुजीव (पीतबन्धुजीव) पीले फूलवाला नेरिफोलिया) Cerebera thevetia (सेरेवेरा थेवेटिया)। उत्पत्ति स्थान-पीतकनेर का उल्लेख चरक, रा०२८ जीवा०३/२८१ प०१७/१२७ सश्रतादि प्राचीनग्रन्थों में ही नहीं मिलता। मध्यकालीन असितसितपीतलोहितपुष्प विशेषाच्चतुर्विधो बन्धूकः ।। निघंटुकारों में केवल काशीराज ने ही अपने राजनिघंटु यह (बन्धूक) कृष्ण, श्वेत, पीत तथा लोहित वर्ण पुष्प में इसका संक्षिप्त उल्लेख किया है। कहा जाता है कि विशेष से चार प्रकार का होता है। यह अमेरीका से भारत में आया है। अब तो भारत में प्रायः (रा०नि० १०/११८ पृ० ३२०) किसी-कसी पौधे में श्वेत फीके पीले और सिन्दूरी सर्वत्र ही यह पाया जाता है। उष्ण प्रदेशों में यह अधिक होता है। पुष्पों के लिए तथा शोभा के लिए यह बगीचों रग के भी पुष्प आते है। में लगाया जाता है। (धन्वन्तरिवनौषधि विशेषांक भाग २ पृ०४१८) विवरण-इस पेड़ के प्रत्येक भाग से तोड़ने पर विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में पीले रंग की उपमा के एक प्रकार का दूध निकलता है जो जहरीला है। इसका __ लिए 'पीयबंधुजीव' शब्द का प्रयोग हुआ है। दूध दाहजनक और विषैला होता है। छाल कडुवी, भेदन, ज्वरघ्न विशेषतः नियतकालिक ज्वर प्रतिबन्धक है। छाल पीया कणवीर की क्रिया तीव्र होती है। औषधिकार्यार्थ इसे अत्यल्प मात्रा पीयाकणवीर (पीतकणवीर) पीले फूल वाली में देते हैं अन्यथा पानी जैसे पतले दस्त और वमन होने रा०२८ लगते हैं। इसके फल से वमन बहत होते हैं। इस कनेर देखें पीयकणवीर शब्द का मुख्य विषैला परिणाम हृदय की मांसपेशियों पर होता है। इसका सघन सुपल्लवित, सुन्दर, सदैव हराभरा, पेड़ पीयासोग लगभग १२ फीट तक ऊंचा, पत्ते अन्य कनेरों के पत्र के जैसे ही किन्तु उनसे पतले, छोटे और अधिक चमकीले पीयासोग (पीताशोक) पीले पुष्पवाला अशोक। होते हैं। फूल पीले, घंटाकार, पांचदलवाले, मीठी रा०२८ प०१७/१२७ सुगन्धयुक्त, शाखाओं के अग्र भाग पर लगते हैं। फूलों विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में पीले रंग की उपमा के के झड़ जाने पर इसमें फल गोलाकार मांसल त्वचा लिए पीयासोग शब्द का प्रयोग हुआ है। युक्त, कच्ची अवस्था में हल्के हरे रंग के तथा पकने पर विवरण-अशोक के पत्ते आम के समान होते हैं। भूरे रंग के १.५ से २ इंच व्यास के होते हैं। फल के भीतर फूल सफेद कुछेक साधारण पीले रंग के होते हैं। एक त्रिकोणाकृति गुठली होती है। यह गुठली भूरे रंग (शा०नि० पुष्पवर्ग०पृ०३८४) की कड़ी, चिकनी होने से बालक इसे गुल्लू कहते हैं और इससे खेला करते हैं। इस गुठली के अंदर हलके पीयासोय पीले रंग के चिपटे दो बीज महाविषैले होते हैं। बालक पीयासोय (पीताशोक) पीला अशोकजीवा०३/२८१ गण खेल में कभी-कभी गठली को फोड कर इन बीजों को खा लेते हैं। उनका कोमल शरीर शीघ्र ही निष्क्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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