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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 191 पीलु पीलु (पीलु) पीलू भ०२२/२ जीवा०१/७१ प०१/३५/१ पीलु के पर्यायवाची नाम पीलुः शीतः सहस्रांशी, धानी गुडफलोपि च । विरेचनफल: शाखी श्यामः करभवल्लभः ।।४४।। पीलु, शीत, सहस्रांशी, धानी, गुडफल, विरेचनफल, शाखी, श्याम और करभवल्लभ ये पीलु के पर्याय हैं। (धन्व०नि०५/४४ पृ०२३२) अन्य भाषाओं में नाम हि०-पीलु. छोटापीलु खरजाल | बं०-पीलु गाछ। म०-पिलु। गु०-पीलु, खारी जाल। क०-गेनुमर | ते०-गोगु। ता०-पेरुन्गोलि । फाo-दरख्ते मिस्वाक् । अ०-अराक । पं०-पीलुजाल । राजपु०-झाल। SALVADORA PERSICA LINN. दुर्बल होती हैं। पत्ते विपरीत चर्मसदृश या मांसल, अंडाकार आयताकार १.२५ से २ इंच लम्बे तथा दोनों शिरों पर गोल होते हैं। इस पर छोटे-छोटे फूल बारही मास आते रहते हैं और वे हरापनयुक्त सफेद होते हैं। फल आधा इंच गोल, चिकने और पकने पर लाल हो जाते हैं। सूंघने पर इनमें राई आदि के समान तीक्ष्णगंध आती है तथा इसमें एक बीज होता है। एक दूसरा बड़ा पीलु होता है जिसको लैटिन में साल्वेडोरा ओलीओसि कहते हैं। इसके फल पकने पर पीले, सूखने पर लाली लिए भूरे रंग के होते हैं। (भाव०नि० पृ०५६१) पुकाट AAAA07 पुण्णाग पुण्णाग (पुन्नाग) जायफल भ०२२/२ जीवा०१/७१ प०१/३५/३ पुन्नाग |पुं। स्वनामख्यातपुष्पवृक्षे। जातीफले, शुक्लपट्टे, श्वेतहस्तिनि, तिलपुष्पवृक्षे । (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०६८४) विमर्श-पुन्नाग शब्द के ऊपर चार वानस्पतिक अर्थ बतलाये गए हैं। पुन्नाग शब्द से सीधा अर्थ पुन्नाग वृक्ष (नागकेसर) का बोध होता है। प्रस्तुत प्रकरण में पुन्नाग शब्द एकास्थिवर्ग के अन्तर्गत है, इसलिए यहां जातीफल अर्थ ग्रहण किया जा रहा है। जातीफल अर्थ में पुन्नाग शब्द के पर्यायवाची नाम मेदिनी में हैं। वह उपलब्ध नहीं है। इसलिए जातिफल के पर्यायवाची नाम दे रहे हैं। जातीफल के पर्यायवाची नाम जातीफलं जातिसृतं, शलूकं, मालतीसुतम ।।१८ // जातीफल, जातिसृत, शलूक और मालतीसुत ये जायफल के नाम हैं। (मदन०नि०३/१८ पृ०७६) अन्य भाषाओं में नाम हि०-जायफल, जायफर | बं०-जायफल । गु०जायफल। म०-जायफल, बोंडा जायफल। पं0जयफल। ते०-जाजिकाय। क०-जाजिकै। ता०जाडिक्कै ब्रह्मी०-झाड़िफू। सिलो०-जडिका | मला० फलसमूह उत्पत्ति स्थान-यह राजपुताना, बिहार, कोंकण, डेक्कन, कर्नाटक, बलूचिस्तान, सिन्धु आदि स्थानों में शुष्कप्रदेशों में होता है। विवरण-इसका वृक्ष छोटा एवं सदा हराभरा रहता है। स्तम्भ टेढा होता है और शाखायें नीची झुकी हुई और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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