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________________ जैन आगम वनस्पति कोश विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में निंबशब्द रस की उपमा के लिए प्रयुक्त हुआ है। देखें बि शब्द | ... निंबकरय निंबकर (निम्बरक) महानिंब वकायन निम्बरक|पुं |महानिम्बे । प० १/३५/३ (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ६०६ ) देखें निंबारग शब्द । विमर्श - निघंटुओं में तथा शब्दकोशों में निंबकरक शब्द नहीं मिलता, निम्बरक शब्द मिलता है। संभव है क का लोप होकर निम्बरक शब्द रह गया | प्रस्तुत शब्द एकास्थिवर्ग के अन्तर्गत है । महानिम्ब के पर्यायवाची नाम महानिम्बो मदोद्रेकः कार्मुकः केशमुष्टिकः । काकाण्डो रम्यकोक्षीरो महातिक्तो हिमद्रुमः । ।११ । । महानिम्ब, मदोद्रेक, कार्मुक, केशमुष्टिक, काकाण्ड रम्यक, अक्षीर, महातिक्त, हिमद्रुम ये सब वकायन के संस्कृत नाम हैं। (राज० नि० ६/११ पृ० २६५) अन्य भाषाओं में नाम हि० - वकाइन, वकायन बकैन, डकानो । बं०घोडानिंब महानिंब मं० - बकाणनिंब काणीनिम्ब कवड़यानिंब । क० - बेट्टदबेउ | गु० - बकान्य, बकानलिंबडो । ते० - पेदवेया, तुरकवयक, कण्डवेय । दा० - गौरीनिंब | ता० - मालाइवेतु वावेप्यम् । गौ०महानिम्ब, घोडानिम्, वननिम् । फा० - तुजा कुनार्य । अ०-वान । ले०- M. Bukayum (एम. बकायन) Melia.Sempervirenswill (मेलिया समपर वीरनस विल) M. Ayradirach (एम.एजा डिरेच) अ० - Persian Lilac (पर्शियन लिल्याक) Common Beadtree (कामन बीड ट्री । उत्पत्ति स्थान- इस वृक्ष का मूल निवास स्थान पर्सिया और अरब माना जाता है। भारत के हिमांचल प्रदेशों में २ से ३ हजार फीट की ऊंचाई पर विशेषतः उत्तरभारत, पंजाब, दक्षिणभारत में बोए हुए इसके वृक्ष तथा कहीं-कहीं नैसर्गिक पैदा हुए भी पाए जाते हैं। इनके Jain Education International अतिरिक्त ब्रह्म देश, चीन, मलायाद्वीप, बलूचिस्तान आदि में भी यह नौसिर्गक रूप से पैदा होते हैं। विवरण - यह भी नीम के कुल का एक मध्यम प्रमाण का वृक्ष है। इस २० से ४० फुट तक ऊंचे सीधे, सुंदर, वृक्ष के तने का व्यास ६ से ७ फुट तक, छाल १/४ से १/२ इंच तक, मोटी, अंदर से भूरे लाल वर्ण की, कड़ी, बाह्य भाग में हलकी, मटमैली, शाखाएं फैली हुई, पत्र संयुक्त १० से २० इंच लंबे, त्रिपक्षवत् । पत्रक १/२ से ३ इंच लंबे, १/२ से १.२५ इंच चौड़े, लंबाग्र आरा जैसे, दन्तुर धार वाले, नीमपत्र की अपेक्षा लंबाई में छोटे, किन्तु अधिक चौड़े । पत्र की सींक ६ से १८ इंच तक लंबी ३ ५ या ७ अभिमुख संयुक्त पत्रकों से युक्त होती है । शीतकाल में ३ से ४ महीनों तक यह वृक्ष पत्ररहित अशोभनीय होता है। फाल्गुन से वैशाख तक यह पत्रों से और पुष्पों से सघन सुशोभनीय हो जाता है। पुष्प नीम पुष्पों से बड़े, गुच्छों में, किंचित् नीलाभ मधुर तिक्त गंध वाले, लंबे वृन्त युक्त, आभ्यन्तर दल फैले हुए श्वेत या बैंगनी रंग के तथा बीच में पुंकेसरों की गहरे बैंगनी रंग की नलिकायुक्त होते हैं। फल नीमफल जैसे, प्रायः १ इंच से कम लंबे, कच्ची दशा में हरे, पकने पर पीले, भीतर पंचकोष युक्त एवं बीजों से युक्त, कहीं कहीं ४ ही बीज कुछ लंबे गोल से, मध्यभाग में मणि के समान छिद्र होते हैं। जिसमें तागा पिरोकर इसकी माला बनाई जाती है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ४ पृ० १६० ) 169 .... निप्फाव For Private & Personal Use Only निप्फाव (निष्पाव) मोठ भ० २१/१५ प० १/४५/१ विमर्श - निष्पाव शब्द का अर्थ राजशिम्बिज बीज, सेम या भटवासु होता है। उसका वर्णन णिप्फाव शब्द में किया गया है। कैयदेवनिघंटुकार निष्पाव शब्द को मोठ के पर्यायवाची नामों में एक माना है। इसलिए यहां मोठ अर्थ भी ग्रहण कर रहे हैं। निष्पाव के पर्यायवाची नाम मकुष्ठको मकुष्ठः स्याद्, निष्पावो वल्लको मतः । मकुष्ठक, मकुष्ठ, निष्पाव और वल्लक ये मकुष्ठ के पर्यायवाची हैं। (कैयदेव नि० धान्यवर्ग पृ० ३१२ ) www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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