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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 131 तंबाकू की तरह, संख्या में बहुत, हलके हरे रंग के, छोटे पर्णवृन्त से युक्त, नीचे के 12x2 इंच लंबे तथा ऊपर के क्रमशः छोटे, भालाकार, महीन दांतों से युक्त एवं मृदुरोमश होते हैं। पुष्प जामुनी आभायुक्त, श्वेत वर्ण के, 1 फीट तक लंबी मंजरिओं में आते हैं। फल ८ मि० मि० व्यास के गोल सामान्य स्फोटीफल होते हैं। बीज बहुत छोटे, अंडाकार, दबे हए, पीताभ भूरे रंग के तथा स्वाद में अत्यन्त तीते होते हैं। इसके पुष्प कांड पर एक गाढ़ा, पीले रंग का स्राव जमा हुआ पाया जाता है। इसमें एक प्रकार की अप्रिय गंध होती है। इसके वायवीय भाग को अक्टूबर तथा नवम्बर में तोड़कर, छाया में सुखाकर उपयोग में लाया जाता है। सूखे हुए पौध पर राल की तरह एक पदार्थ लगा रहता है तथा इसका स्वाद उष्ण एवं तीता होता है। इसकी धूल से नाक तथा गले में तंबाकू की तरह प्रक्षोभ होता है। इसकी नली से वंसी बनाई जाती है जिसे कोंकण में पावा कहते हैं। (भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग०पृ० ३७८) का क्षुप पांच फुट से लेकर ७ फुट तक लम्बा होता है। भूरि नवनीता के पर्यायवाची नाम आरामशीतला देवगन्धा कुक्कुटमर्दकः ।।११०३।। विटिका भक्षिका भूरिनवनीता प्रकीर्तिता।। आरामशीतला, देवगन्धा, कुक्कुटमर्दक, विटिका भक्षिका, भूरिनवनीता ये देवगंधा के पर्याय हैं। (कैयदेव०नि० ओषधिवर्ग श्लोक ११०३,११०४ पृ०२०४) देवगन्धा |स्त्री। महामेदायाम् । राज०नि० वर्ग० ५। आरामशीतलायाम् । वैद्यक निघंटु । (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ५५७) णलिण णलिण (नलिन) थोडा लाल क्षुद्रोत्पल जीवा० ३/२८६. ईषद् रक्तं तु नलिनं ।।१३४।। थोड़ा लाल नलिन (क्षुद्रोत्पल) के नाम से जाना जाता है। (धन्व०नि० ४/१३४ पृ० २१७) नलिन (सुगंधित) कमल (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ०१३६) __णवणीइया णवणीइया ( ) महामेदा प० १/३८/३ विमर्श-उपलब्ध वनस्पति शास्त्र के निघंटुओं तथा आयुर्वेदीय शब्दकोशों में संस्कृत का नवनीतिका या नवनीता शब्द नहीं मिला है। कैयदेव निघण्टु में भूरि नवनीता शब्द मिला है। वर्तमान में नवनीता के स्थान । पर भूरिनवनीता शब्द ग्रहण कर रहे हैं। प्रस्तुत प्रकरण में णवणीइया शब्द गुल्म वर्ग के अन्तर्गत है। महामेदा महामेदा अन्य भाषाओं में नाम हिo-महामेदा। पं०-महामेदा। बं०-महामेदा। म०-महामेदा। राजा-महामेदा। मन्दाकिनी घाटी उत्तराखण्ड में-रीगाल धोता। ले०-Polygonatum Verticilltaum Allioni (पोलिगोनेटम बरटिसिलेटम आलिओनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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