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________________ लेश्या-कोश आगमामधील प्रमाणांचा संग्रह आहे । पुढे याच प्रमाणे दिगम्बर ग्रथांचा लेश्याकोश प्रसिद्ध करण्याचे त्वांचे मानस आहे । स्तुत्य आहे। कार्य हे शुष्क म्हणन वाटते परन्तु फार सरस आहे। कारण आत्म परिणामाची स्थिति समजल्याशिवाय आत्म विशुद्ध होवू शकत नाहीं। त्या दृष्टिने या कार्याला फार मोठे महत्व आहे। विद्वान लेखकांनी अत्यन्त उपयोगी कार्यामध्ये आपले योगदान दिले आहे। खरोखर ते प्रशंसाह आहेत। अशा ग्रन्थाची प्रति पुस्तक भांडार आणि सशोधन मन्दिरामध्ये असणे जरूर आहे । संशोधक विद्वानांना या कोषाचा फार उपयोग होईल । ग्रन्थाचे बाह्यांतरंग सौन्दर्यही आकर्षक आहे। -वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री १२ "श्रमणोपासक" बीकानेर-दिनांक ५ अप्रैल ६६ के अंक में ___ पुस्तक में लेखकद्वय ने बड़ी विशदता और सफलता से जैन साहित्य में निहित लेश्या सम्बन्धी विभिन्न उल्लेखों का संचयन किया है। जो लेखकद्वय की ज्ञान साधना और जिज्ञासावृत्ति का बोध कराता है। जैन दर्शन के सिद्धान्तों के चिन्तन-मनन की ओर विद्वानों की रुचि बढ़ रही है। किन्तु मूल सिद्धान्त ग्रन्थों में उनका क्रमबद्ध विषयानुक्रम विवेचन उपलब्ध न होने से समझने में काफी समय और श्रम लगाना पड़ता है और उसके बाद भी पूरी जानकारी न मिलने से निरुत्साहित हो जाते हैं। इस कमी की पूर्ति में कोष काफी सहायक होगा। __ कोष में लेश्या के भेद, उपभेद, आदि के विवेचन द्वारा विषय का सर्वाङ्ग विवरण देने के लिये लेखकद्वय के प्रयत्न बधाई के पात्र हैं। ऐसे व्यवस्थित एवं उपयोगी लेखन और प्रकाशन के लिये लेखक एवं प्रकाशक का अभिनन्दन करते हैं और आशा करते हैं कि जैन रत्नाकर के अनमोल रत्नों को प्रकाश में लाने के लिये अपने चिन्तन, मनन और स्वाध्याय का सदुपयोग करके जैन वाङ्गमय को समृद्ध और सम्पन्न बनायेंगे। १३ “जैन प्रकाश" बम्बई-दिनांक २३ फरवरी ६६ के अंक में (गुजराती) ___ जैन दर्शन सूक्ष्म अने गहन छे तथा मूल सिद्धान्त ग्रन्थों मां तेनु क्रमबद्ध विषयानुक्रम विवेचन न होवाने कारणे तेने समजवामां मुश्केली पड़े छे, अनेक विषयोनु विवेचन अपूर्ण-अधुर छे, तेने कारणे जैन-अजैन बन्ने प्रकार ना विद्वानों जन दर्शन ना अध्ययन मां मुर्भाय छे, क्रमबद्ध अने विषयानुक्रम विवेचन नो अभाव जैन दर्शन ना अध्ययन मां साथी मोटी अन्तराय ऊभी करे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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