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________________ लेश्या-कोश ४९९ विषयों एवं विषयान्तर्गत उपविषयों के वर्गीकरण में सार्वभौमिक दशमलव प्रणाली का उपयोग किया गया है, जिससे विषयों की सहज बोधगम्यता का प्रादुर्भाव अनायास ही हो जाता है । संक्षेप में, यह पुस्तक ज्ञान पिपासुओं और गोधित्सुओं के लिये निश्चय ही उपयोगी बन पड़ी है और इसका प्रकाशन, उलझनपूर्ण एवं गहन जैन वाङ्गमय के क्षेत्र में, क्रमबद्ध एवं विषयानुक्रम विवेचना का स्पष्ट सूत्रपात करता है। ऐसी व्यवस्थित एवं उपयोगी पुस्तक लेखन और प्रकाशन के लिये लेखक एवं प्रकाशक को अमित बधाइयाँ । -अजित शुकदेव १० "जिनवाणी" जयपुर-फरवरी ६६ के अंक में जैन दर्शन अत्यन्त सूक्ष्म और गहन है। उसमें सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों धरातलों पर जीवन के विविध पक्ष उद्घाटित हुए हैं पर उसमें क्रमबद्धता न होने से अध्येता को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वर्षों से यह अनुभव किया जा रहा था कि जैन दर्शन के विविध विषयों के कोश प्रकाशित किये जाँय । श्री बांठियाजी के अध्यवसाय व अथक प्रयास से यह युगान्तकारी कार्य अब सम्पन्न होने जा रहा है। प्रथम चरण के रूप में यह लेश्या कोश हमारे सामने आया है। इसमें शब्द विवेचन, द्रव्य, लेश्या (प्रायोगिक, विस्रसा ), भावलेश्या, लेश्या और जीव, सलेशी जीव, विविध आदि मूल वर्गों में विभाजित कर, प्रत्येक वर्ग को कई उपवर्गों में बाँट कर, जैन आगमों में इतस्ततः लेश्या सम्बन्धी बिखरे हुए प्रसंगों को एक स्थान पर संयोजित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया गया है। मूल पाठ का शब्दार्थ व यथाप्रसंगानुसार विवेचनात्मक अर्थ देकर ग्रन्थ को सर्वसाधारण के लिये उपयोगी बना दिया गया है। यह ग्रन्थ प्रत्येक पुस्तकालय, शोध केन्द्र व दर्शन के अध्येता के लिये समान रूप से उपयोगी है। इस महत्वपूर्ण प्रकाशन के लिये सम्पादक और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं। . -डा० नरेन्द्र भानावत ११ “जैन बोधक' सोलापुर-दिनांक ६-१-६६ के अंक में ( मराठी ) ____ या नन्थामध्ये उभय विद्वान लेखकांनी या लेश्या विषयी जन ग्रन्थामध्ये कोठेकोठे काय सांगितले आहे । आणि गतिक्रमाने त्यांच्या सूक्ष्म-भेदामध्ये कोणत्या ठिकाणी कोणती लेश्या असु शकते याचे विवेचना पूर्वक तालिका दिली आहे । हे काम फार परिश्रमाचे आणि महत्वाचे आहे । या ग्रन्थामध्ये मुख्यतः श्वेताम्बर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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