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________________ ४३० लेश्या-कोश तिण सूं समचे तेजू पद्म सुकल लेस्या नै, कहि आसव निर्जरा जीव । समचे कहिवै उदै खायक, खमोपसम निपन लेस्या कहीव रे ॥१६।। झीणीचरचा, ढाल १३ । गा १३ से १६ समुच्चय दृष्टि से शुक्ल भावलेश्या उपशम को छोड़कर शेष चार भावों में हैं। वह छः द्रव्यों में जीव द्रव्य है। नव पदार्थों में उसका समवतार तीन पदार्थों-जीव, आश्रव और निर्जरा में होता है। वह विशुद्धि व करणी दोनों दृष्टियों से निरबद्य है। वह शाश्वत नहीं है, किन्तु अशाश्वत है। औदयिक भाव वाली तेजस, पद्म और शुक्ल भावलेश्याए नव पदार्थों में दो पदार्थों-जीव और आश्रव में समवतरित होती है। क्योंकि औदयिक भाववाली लेश्या का समवतार निर्जरा में नहीं होता। उससे पुण्य का आश्रव होता है अतः वे आश्रव होती है । इस प्रकार समुच्चय दृष्टि से तेजस, पद्म और शुक्ललेश्या का समवतार जीव, आश्रव और निर्जरा पदार्थ में किया गया है। और समुच्चय दृष्टि में उन लेण्याओं को उदय, क्षय तथा क्षयोपशम निष्पन्न कहा गया है । असुभ-लेस्या कषाय मोह कर्म उदै थी, निकेवल उदै-भाव में लहिये रे । -झीणीचरचा, ढाल १३ । गा १८ । उत्तरार्ध अशुभलेश्या और कषाय मोह कर्म के उदय से होते हैं अतः उन्हें केवल औदयिक भाव में कहा गया है। .६ द्रव्य-लेस्या छहु किसो भाव छ ? परिणामीक पिछाण । भाव-लेस्या छहु किसो भाव छै ? सांभलिये सुविहाण ।।१।। भाव-लेस्या कृष्णादिक तीनू, उदै परिणामिक भाव । किसा कर्म रो उदै-निपन छै ?, आगल सुणियै न्याव ।।१६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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