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________________ ४२९ लेश्या-कोश ते समचै दोनू भाव-लेस्या सावद नही छै, ऊजल-करणी लेखे निरवद छ । सासती नहीं ते असासती कहीये, नय-वचन वारु निरमल छ रे ।।१२।। -झीणीचरचा, ढाल १३ प्रथम तीन भाव लेश्याए ( कृष्ण, नील और कापोत ) औदयिक और पारिणामिक-इन दो भावों में होती हैं। वे छः द्रव्यों में जीव है तथा नव पदार्थों में उनका सभवतार दो पदार्थों-जीव और आश्रव में होता है। वे प्रत्यक्ष साबध है। वे विशुद्धि और करनी दोनों ही दृष्टियों से निरबद्य नहीं है। वे शाश्वत नहीं है किन्तु अशाश्वत है। वे मोहकर्म उदय से प्रवृत्त होती है। समुच्चय दृष्टि से तैजस और पद्म-ये दो भाव लेश्याए औदयिक क्षायोपशमिक तथा पारिणामिक तीनों भाव में होती है। वे छः द्रव्यों में जीव द्रव्य है। नव पदार्थों में उनकी समवतार तीन पदार्थों-जीव, आश्रव और सहचर रूप में निर्जरा में होता है। वे दोनों ही भावलेश्याए साबध नहीं है। वे विशुद्धि और करनी दोनों ही दृष्टियों से निरबद्य है। वे शाश्वत नहीं है किन्तु आशाश्वत है। यह निरवद्य नय वचन है। .८ समचै सुकल भाव-लेस्या भाव किसो छै, उपसम वर्जी च्यार । छमें जीव नव में जीव नै आसव, निर्जरा न्याय विचार रे ।।१३॥ तिण सुकल लेस्या नै सावद्य न कहिये, निरवद ऊजल करणी लेखे । सासती नहीं नै असासती कहिये, बुद्धिवंत न्याय संपेखे रे।।१४।। उदै-भाव तेजू पदम सुकल लेस्या ते, नव में जीव आसव कहावे । उदो-भाव निर्जरा नहि होवै, पुन्य ग्रहण आसव उदै भावे रे ॥१५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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