SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८ लेश्या-कोश सर्व सलेशी नारकी समाहारी, समशरीरी, समोच्छवासनिश्वासी, समकर्मी, समवर्णी, समलेशी, समवेदनावाले, समक्रियावाले, समायुष्यवाले तथा समोपपन्नक नहीं हैं। देखो औधिक गमक-पण्ण० प १७ । उ १ । सू १ से ६ । पृ० ४३४-३५ सर्व सलेशी असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार समाहारी यावत् समोपपन्नक नहीं हैं। देखो-पण्ण० प १७ । उ १ । सू ७ । पृ० ४३५-३६ सर्व सलेशी पृथ्वीकाय समाहारी, समकर्मी, समवर्णी तथा समलेशी समायुष्यवाले तथा समोपपन्नक नहीं हैं लेकिन समवेदनावाले तथा समक्रियावाले हैं । इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय तक जानना । देखो-पण्ण० १७ । उ १ । सू८ । पृ० ४३६ सर्व सलेशी तिर्यच पंचेन्द्रिय सलेशी नारकी की तरह समाहारी यावत् समोपपन्नक नहीं हैं। देखो-पण्ण० प १७ । उ १ । सू ८ । पृ० ४३६ सर्व सलेशी मनुष्य समाहारी यावत् समोपपन्नक नहीं हैं। देखो-पण्ण० प १७ । उ १ । सू ६ । पृ० ४३६-३७ सर्व सलेशी वानव्यं तर देव असुरकुमार की तरह समाहारी यावत् समोपपन्नक नहीं हैं। देखो-पण्ण० प १७ । उ १ । सू १० । पृ० ४३७ सर्व ज्योतिष-वैमानिक देव भी असुरकुमार की तरह समाहारी यावत समोपपन्नक नहीं हैं। देखो-पण्ण० प १७ । उ १ । सू १० । पृ० ४३७ ६१.२ कृष्णलेशी जीव-दण्डक और समपद कण्हलेस्सा णं भंते ! नेरइया सव्वे समाहारा पुच्छा ? गोयमा! जहा ओहिया, नवरं नेरइया वेयणाए माइमिच्छदिट्ठीउववन्नगा य अमाइसम्म दिट्ठीउववन्नगा य भाणियव्वा, सेसं तहेव जहा ओहि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy