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________________ लेश्या-कोश ३७ देवत्ताए उबवण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं छसागरोवमाइ ठिई पण्णत्ता। वीरलेश्य-सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प के एक विमान विशेष का नाम । सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प में कई देवता वीर आदि १४ विमानों में उत्पन्न होते हैं । इन १४ विमानों में वीरलेश्य नाम का भी एक विमान है। ०४ ७५ समलेस्सा ( समलेश्या) -भग० श १ । उ २ । सू ६६-६७ मूल-नेरइयाणं भंते ! सज्वे समलेस्सा ? गोयमा ! णो इण8 समट्ठ । समलेश्या-सम-तुल्य लेश्या । उदाहरणार्थ-नारकियों में सभी नारकी समलेशी-सम तुल्य लेश्या वाले नहीं होते हैं, क्योंकि पूर्वोत्पन्नक नारकी विशुद्धतरलेशी होते हैं और पश्चादुत्पन्नक नारकी अविशुद्धतरलेशी होते हैं । ०४.७६ सलेस्स ( सलेश्य ) --पण्ण ० प १८ । सू १३३५ मूल-सलेस्से णं भंते ! सलेस्से त्ति कालओ केवचिरं होइ ? पुच्छा। गोयमा! सलेसे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा–अणादीए वा अपज्जवसिए १, अणादीए वा सपजवसिए २ । टीका-सह लेश्या यस्य येन वा स सलेश्यः । सलेश्य अर्थात् लेश्या से युक्त । जो जीव लेश्या सहित होते हैं उन्हें सलेश्य कहा जाता है । तेरहवें गुणस्थान तक के जीव सलेश्य होते हैं । ०४.७७ संखित्तविउलतेयलेस्सं (संक्षिप्तविपुलतेजोलेश्या) -भग० श १ उ १ । सू ६ -भग० श १५ । उ १ । सू ७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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