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________________ ३८ लेश्या-कोश ____ मूल-x x x भगवओ महावीरस्स जे8 अंतेवासी इदभूई णामं अणगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे xxx संखितविउलतेयलेसे x x x अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । टीका-'संखित्तविउलतेयलेस्से' त्ति संक्षिप्ता शरीरान्तीनत्वेन ह्रस्वतां गता, विपुला विस्तीर्णा अनेकयोजनप्रमाणक्षेत्राश्रितवस्तुदहनसमर्थत्वात्, तेजोलेश्या विशिष्टतपोजन्य लब्धिविशेषप्रभवा तेजोज्वाला यस्य स तथा। मूल-जे णं गोसाला एगाए सणहाए कुम्मासपिडियाए एगेण य वियडासएणं छह छहण अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झइ पगिज्झइ जाव विहरति से गं अंतो छण्हं मासाणं संखित्तविउलतेयलेम्से भवति । संक्षिप्तविपुलतेजोलेश्या-विशिष्टतपोजन्य तेजोलेश्या-एकलब्धि विशेष । ___ यह शब्द गौतम स्वामी के विशेषणों में प्रयुक्त किया गया है। यह लेश्या अप्रयोगकाल में शरीरस्थ होने से संक्षिप्त रहती है तथा प्रयोगकाल में विपुल अर्थात् अनेक योजन प्रमाण क्षेत्र में आत्रित वस्तुओं को दग्ध करने की शक्ति रखती है। यह संक्षिप्तविपुलतेजोलेश्या ( लब्धि ) नखसहित बन्द की हुई मुट्ठी में जितने उड़द के वाकले आवें उतने मात्र से और एक चुल्लू भर पानी के पारण से निरन्तर छट्ट-छ? भक्त की तपस्या के साथ दोनों हाथ ऊँचे रखकर यावत् आतापना लेने से प्राप्त होती है। ०४.७८ संबद्धलेसागा ( सम्बद्धलेश्यक ) -सूर० प्रा १६ । सू १०० । कालोदधि । गा २ मूल-बायालीसं चंदा बायालीसं च दिणकरा दित्ता। कालोदधिमि एते चरंति संबद्धलेसागा ।। सम्बद्धलेश्यक-जिनकी लेश्याएं रश्मियाँ परस्पर में सम्बन्धित हों। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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