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________________ लेश्या - कोश २११ जुम्मनेरइयाणं भंते! कओ उववज्जंति ? एवं चेव निरवसेसं, एवं तमाए कि, असत्तमाए वि । नवरं उववाओ सव्वत्थ जहा वक्कंतीए । कण्हलेस्स खुड्डागतेओग - नेरइया णं भंते! कओ उववज्र्ज्जति० ? एवं चेव, नवरं तिन्नि वा सत्त वा एक्कारस वा पन्नरस वा संखेज्जा वा असंखेन्ना वा, सेसं तं चेव । एवं जाव अहेसत्तमाए वि । कण्हलेस्सखुड्डागदावरजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति० ? एवं चेव । नवरं दो वा छ वा दस वा चोस वा, सेसं तं चेव, ( एवं ) धूमप्पभाए वि जाव असत्तमाए । कण्हलेस्सखुड्डागकलिओगनेरइया णं भंते ! कओ उववज्र्ज्जति० ? एवं चेव । नवरं एक्को वा पंचवा नववा तेरस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा, सेसं तं चैव । एवं धूमभाए कि, तमाए कि, असत्तमाए वि । नीललेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति० ? एवं जव कण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मा | नवरं उववाओ जो वालुयप्पभाए, सेसं तं चेव । वालुयप्पभापुढविनीललेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया एवं चेव, एवं पंकप्पभाए कि, एवं धूमप्पभाए वि । एवं चउसु वि जुम्मेसु । नवरं परिमाणं जाणियव्वं । परिमाणं जहा कण्हलेस्स उद्द सए | सेसं तहेव । काऊलेस्स खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति० ? एवं जहेव कण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया नवरं उववाओ जो रयणप्पभाए, सेसं तं चेव । रयणप्पभापुढविकाऊलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति० ? एवं चेव । एवं सक्कर पभाए वि, एवं वालुयप्पभाए वि । एवं चउसु वि जुम्मेसु । नवरं परिमाणं जाणियव्वं, परिमाणं जहा कण्हलेस्सउद सए, सेसं तं चेव । - भग० श ३१ । उ २ से ४ । पृ० ६११-१२ कृष्णलेशी क्षुद्रकृतयुग्म नारकी का उपपात प्रज्ञापना सूत्र के व्युत्क्रांतिपद से जानना । वे एक समय में चार अथवा आठ अथवा बारह अथवा सोलह अथवा संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं तथा वे किस प्रकार उत्पन्न होते हैं आदि अवशेष के सात पद से जहानामए पae x x x जाव नो परप्पयोगेणं उववज्जंति (भग० श २५ । उ८) से जानना । धूमप्रभा पृथ्वी, तमप्रभा पृथ्वी तथा तमतमाप्रभा पृथ्वी के कृष्णलेशी क्षुद्रकृतयुग्म नारकी के सम्बन्ध में कहाँ से उत्पन्न, एक समय में कितने उत्पन्न तथा किस प्रकार उत्पन्न आदि नौ पदों के सम्बन्ध में ऐसा ही कहना परन्तु उपपात सर्वत्र प्रज्ञापना के व्युत्क्रांतिपद के अनुसार कहना | कृष्णलेशी क्षुद्रभ्योज नारकी के सम्बन्ध में नौ पदों में ऐसा ही कहना ; परन्तु एक समय में तीन अथवा सात अथवा ग्यारह अथवा पन्द्रह अथवा संख्यात अथवा असंख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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