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________________ २१० लेश्या-कोश बचे उस राशि को कृतयुग्म कहते हैं ; जिस राशि में चार का भाग देने से तीन बचे उसको व्योज कहते हैं ; जिस राशि में चार का भाग देने से दो बचे उसको द्वापरयुग्म कहते हैं तथा जिस राशि में चार का भाग देने से एक बचे उसको कल्योज कहते हैं।। अन्य अपेक्षा से भगवती सूत्र में तीन प्रकार के युग्मों का विवेचन है, यथा-क्षुद्रयुग्म, (श ३१, ३२), महायुग्म (श ३५ से ४० ) तथा राशियुग्म (श ४१) । सामान्यतः छोटी संख्या वाली राशि को क्षुद्रयुग्म कहा जा सकता है। इसमें एक से लेकर असंख्यात तक की संख्या निहित है । महायुग्म बृहद् संख्या वाली राशि का द्योतक है तथा इसमें पाँच से लेकर अनंत तक की संख्या निहित है तथा इसमें गणना के समय और संख्या दोनों के आधार पर राशि का निर्धारण होता है। राशियुग्म इन दोनों को सम्मिलित करती हुई संख्या होनी चाहिए तथा इसमें एक से लेकर अनंत तक की संख्या निहित है। क्षद्रयुग्म में केवल नारकी जीवों का अट्ठारह पदों से विवेचन है । महायुग्म में इन्द्रियों के आधार पर सर्व जीवों ( एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय) का तैंतीस पदों से विवेचन है। राशियुग्म में जीव-दंडक के क्रम से जीवों का तेरह पदों से विवेचन है। ] इस प्रकरण में क्षुद्रयुग्मराशि नारकी जीवों का नौ उपपात के तथा नौ उद्वर्तन (मरण ) के पदों से विवेचन किया गया है ; तथा विस्तृत विवेचन औधिक क्षुद्रकृतयुग्म नारकी के पद में है। अवशेष तीन युग्मों में इसकी भुलावण है तथा जहाँ भिन्नता है वहाँ भिन्नता बतलाई गई है। इसमें भग० श २५ । उ ८ की भी भुलावण है। (१) कहाँ से उपपात, (२) एक समय में कितने का उपपात, (३) किस प्रकार से उपपात, (४) उपपात की गति की शीघ्रता, (५) परभव-आयु के बंध का कारण, (६) परभव-गति का कारण, (७) आत्मऋद्धि या परऋद्धि से उपपात, (८) आत्मकर्म या परकर्म से उपपात, (E) आत्मप्रयोग या परप्रयोग से उपपात । इस प्रकार उद्वर्तन ( मरण ) के भी उपयुक्त नौ अभिलाप समझने । औधिक, भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक, समदृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सममिथ्यादृष्टि, कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक नारकी जीवों का चार क्षुद्रयुग्मों से तथा चार-चार उद्देशक से विवेचन किया गया है। हमने यहाँ पर लेश्या विशेषण सहित पाठों का संकलन किया है। '८५.१ सलेशी क्षुद्रयुग्म नारकी का उपपात : कण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति० १ एवं चेव जहा ओहियगमो जाव नो परप्पओगेणं उववजंति । नवरं उववाओ जहा वक्कतीए। धूमप्पभापुढविनेरइया णं सेसं तं चेव (तहेव)। धूमप्पभापुढविकण्हलेस्सखुड्डागकड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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