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________________ २१२ लेश्या - कोश उत्पन्न होते हैं । धूमप्रभा, तमप्रभा, तमतमाप्रभा पृथ्वी के कृष्णलेशी क्षुद्रत्रयोज नारकी के विषय में भी इसी प्रकार जानना । कृष्णलेशी क्षुद्रद्वापरयुग्म नारकी के सम्बन्ध में नौ पदों में ऐसा ही कहना परन्तु एक समय में दो अथवा छः अथवा दस अथवा चौदह अथवा संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं। धूमप्रभा यावत् तमतमाप्रभा पृथ्वी के कृष्णलेशी क्षुद्रद्वापरयुग्म नारकी के विषय में ऐसा ही कहना । कृष्णलेशी क्षुद्रकल्योज नारकी के समय में ए क अथवा पाँच अथवा नौ उत्पन्न होते हैं 1 इसी प्रकार धूमप्रभा, तमप्रभा, तमतमाप्रभा पृथ्वी के कृष्णलेशी क्षुद्रकल्योजयुग्म नारकी के सम्बन्ध में कहना | सम्बन्ध में नौ पदों में ऐसा ही कहना परन्तु एक अथवा तेरह अथवा संख्यात अथवा असंख्यात नीललेशी क्षुद्रकृतयुग्म नारकी के सम्बन्ध में जैसा कृष्णलेशी क्षुद्रकृतयुग्म नारकी के उद्देश में कहा वैसा ही कहना, लेकिन उपपात वालुकाप्रभा में जैसा हो वैसा कहना । वालुकाप्रभा पृथ्वी के नीललेशी क्षुद्रकृतयुग्म नारकी के सम्बन्ध में भी ऐसा ही कहना । इसी प्रकार पंकप्रभा तथा धूमप्रभा पृथ्वी के नीललेशी क्षुद्रकृतयुग्म नारकी के सम्बन्ध में जानना | परन्तु उपपात की भिन्नता ज इसी प्रकार बाकी तीनों युग्मों में जानना । लेकिन परिमाण की भिन्नता कृष्णलेशी उद्द ेसक से जाननी । " कापोतलेशी क्षुद्रकृतयुग्म नारकी के सम्बन्ध में जैसा कृष्णलेशी क्षुद्रकृतयुग्म नारकी के उद्दे शक में कहा वैसा ही कहना लेकिन उपपात रत्नप्रभा में जैसा हो वैसा ही कहना । रत्नप्रभा पृथ्वी के कापोतलेशी क्षुद्रकृतयुग्म नारकी के सम्बन्ध में भी ऐसा ही कहना । इसी प्रकार शर्करा प्रभा तथा वालुकाप्रभा पृथ्वी के कापोतलेशी क्षुद्रकृतयुग्म नारकी के सम्बन्ध में भी कहना परन्तु उपपात की भिन्नता जाननी । इसी प्रकार बाकी तीनों युग्मों में जानना लेकिन परिमाण की भिन्नता कृष्णलेशी उद्देशक से जाननी । कण्हलेस्सभवसिद्धियखुड्डागकडजुम्मनेरझ्या णं भंते! कओ उववज्जंति० ? एवं जव ओहिओ कण्हलेस्स उद्द सओ तहेव निरवसेसं चउसु वि जुम्मेसु भाणियव्वो, जाव असत्तमपुढविकण्हलेस ( भवसिद्धिय ) खुड्डागकलिओ गनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जंति० ? तहेव । नीललेस्सभवसिद्धिया चउसु वि जुम्मेसु तहेव भाणियव्वा जहा ओहिए नीललेस्स उद्दे सए । काउलेस्सभवसिद्धिया चउसु वि जुम्मेसु तहेव उववाएयच्वा जहेव ओहिए कालेस्स उद्द सए | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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