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________________ लेश्या-कोश १५५ कुमारा । से नूणं भंते ! तेऊलेस्से जोइसिए तेऊलेस्सेसु जोइसिएसु उववज्जइ ? जहेव असुरकुमारा। एवं वेमाणिया वि, नवरं दोण्हं पि चयंतीति अभिलावो। . -पण्ण० प १७ । उ ३ । सू २७ । पृ० ४४३ यह निश्चित है कि कृष्णलेशी नारकी कृष्णलेशी नारकी में उत्पन्न होता है, कृष्णलेशी रूप में ही मरण को प्राप्त होता है। जिस लेश्या में वह उत्पन्न होता है, उसी लेश्या में मरण को प्राप्त होता है। इसी प्रकार नीललेशी नारकी भी नीललेशी नारकी में उत्पन्न होता है तथा नीललेशी रूप में ही मरण को प्राप्त होता है। जिस लेश्या में वह उत्पन्न होता है, उसी लेश्या में मरण को प्राप्त होता है। इसी प्रकार कापोतलेशी नारकी भी कापोतलेशी नारकी में उत्पन्न होता है तथा कापोतलेशी रूप में ही मरण को प्राप्त होता है। जिस लेश्या में वह उत्पन्न होता है, उसी लेश्या में मरण को प्राप्त होता है । ___ इसी प्रकार असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार देवों के संबंध में कहना; लेकिन लेश्याकृष्ण, नील, कापोत, तेजो कहनी। यह निश्चित है कि कृष्णलेशी पृथ्वीकायिक जीव कृष्णलेशी पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होता है तथा कदाचित् कृष्णलेशी होकर, कदाचित् नीललेशी होकर, कदाचित् कापोतलेशी होकर मरण को प्राप्त होता है। कदाचित् जिस लेश्या में उत्पन्न होता है, कदाचित् उसी लेश्या में मरण को प्राप्त होता है। ___इसी प्रकार नीललेशी तथा कापोतलेशी पृथ्वीकायिक जीव के सम्बन्ध में वर्णन करना। तेजोलेशी पृथ्वीकायिक जीव तेजोलेशी पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होता है तथा कदाचित् कृष्णलेशी होकर, कदाचित् नीललेशी होकर, कदाचित् कापोतलेशी होकर मरण को प्राप्त होता है। तेजोलेश्या में वह उत्पन्न होता है लेकिन मरण को प्राप्त नहीं होता है। __इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीव की तरह अपकायिक जीव तथा वनस्पतिकायिक जीव के सम्बन्ध में चारों लेश्याओं का वर्णन करना। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीव की तरह अग्निकायिक जीव एवं वायुकायिक जीव के सम्बन्ध में तीन लेश्याओं का ही वर्णन करना ; क्योंकि इनमें तेजोलेश्या नहीं होती है। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीव की तरह द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव के सम्बन्ध में तीन लेश्याओं का ही वर्णन करना। तिर्यंचपंचेन्द्रिय तथा मनुष्य के सम्बन्ध में वैसा ही कहना जैसा पृथ्वीकायिक जीव के सम्बन्ध में आदि की तीन लेश्या को लेकर कहा ; परन्तु छः लेश्याओं का वर्णन करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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