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________________ लेश्या-कोश '५५ लेश्या और गर्भ-उत्पत्ति ____ कण्हलेसे णं भंते ! मणुस्से कण्हलेसं गब्भं जणेज्जा ? हंता गोयमा ! जणेज्जा। कण्हलेसे मणुस्से नीललेसं गब्भं जणेज्जा ? हंता गोयमा ! जणेज्जा, जाव सुक्कलेसं गन्भं जणेज्जा । नीललेसे मणुस्से कण्हलेसं गन्भं जणेज्जा ? हंता गोयमा ! जणेज्जा, एवं नीललेसे मणुस्से जाव सुक्कलेसं गन्भं जणेज्जा, एवं काऊलेसेणं छप्पि आलावगा भाणियव्वा । तेऊलेसाण वि पम्हलेसाण वि सुक्कलेसाण वि, एवं छत्तीसं आलावगा भाणियव्वा । कण्हलेसा इत्थिया कण्हलेसं गभं जणेज्जा ? हंता गोयमा ! जणेज्जा, एवं एए वि छत्तीसं आलावगा भाणियव्वा । कण्हलेसे णं भंते ! मणुस्से कण्हलेसाए इत्थियाए कण्हलेसंगभं जणेज्जा ? हंता गोयमा ! जणेज्जा, एवं एए छत्तीसं आलावगा। कम्मभूमगकण्हलेसे णं भंते! मणुस्से कण्हलेसाए इत्थियाए कण्हलेसं गभं जणेज्जा ? हंता गोयमा ! जणेज्जा, एवं एए छत्तीसं आलावगा। अकम्मभूमयकण्हलेसे मणुस्से अकम्मभूमयकण्हलेसाए इत्थियाए अकम्मभूमयकण्हलेसं गभं जणेज्जा ? हंता गोयमा ! जणेज्जा, नवरं चउसु लेसासु सोलस आलावगा, एवं अंतरदीवगाण वि। -भग० श १६ । उ २ । प्रज्ञापणा की भोलावणा पृ० ७८१ -पण्ण० प १७ । उ ६ । सू ६७ । पृ० ४५२ १--कृष्णलेशी मनुष्य कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी गर्भ को उत्पन्न करता है। २-नीललेशी मनुष्य कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी गर्भ को उत्पन्न करता है। ३-कापोतलेशी मनुष्य कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी गर्भ को उत्पन्न करता है। ४-तेजोलेशी मनुष्य कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी गर्भ को उत्पन्न करता है। ५ - पद्मलेशी मनुष्य कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी गर्भ को उत्पन्न करता है । ६-शुक्ललेशी मनुष्य कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी गर्भ को उत्पन्न करता है। ७ से १२ - इसी प्रकार कृष्णलेशी स्त्री यावत् शुक्ललेशी स्त्री कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी गर्भ को उत्पन्न करती है। १३ से १८-कृष्णलेशी मनुष्य यावत् शुक्ललेशी मनुष्य कृष्णलेशी स्त्री में यावत् शुक्ललेशी स्त्री में कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी गर्भ को उत्पन्न करता है। १६ से २४-कर्मभूमिज कृष्णलेशी मनुष्य यावत् शुक्ललेशी मनुष्य कृष्णलेशी स्त्री यावत् शुक्ललेशी स्त्री में कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी गर्भ उत्पन्न करता है । २५ से २८-अकर्मभूमिज कृष्णलेशी मनुष्य यावत् तेजोलेशी मनुष्य अकर्मभूमिज कृष्णलेशी स्त्री यावत् तेजोलेशी स्त्री कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी गर्भ उत्पन्न करता है। २६ से ३२-इसी प्रकार अन्तर्वीपज मनुष्यों का जानना। ع عر Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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