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________________ ६४. लेश्या-कोश जा नीलाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया। जहन्नेणं काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा॥ तेण परं वोच्छामि, तेऊलेसा जहा सुरगणाणं । भवणवश्वाणमंतर जोइस वेमाणियाणं च ।। पलिओवमं जहन्ना, उक्कोसा सागरा उ दुण्हहिया। पलियमसंखेज्जेणं, होइस भागेण तेऊए । दसवाससहस्साई, तेऊए ठिई जहन्निया होइ। दुन्नुदही पलिओवमअसंखभागं च उक्कोसा ॥ जा तेऊए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया। जहन्नेणं पम्हाए, दस मुहुत्ताऽहियाइं उक्कोसा ।। जा पम्हाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिया। जहन्नेणं सुक्काए, तेत्तीसमुहुत्तमब्भहिया ॥ -उत्त० अ ३४ । गा ४७-५५ । पृ० १०४८ देवों की लेश्या की स्थिति में कृष्णलेश्या की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की होती है। नीललेश्या की जघन्य स्थिति तो कृष्ण लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति से एक समय अधिक है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है। कापोत लेश्या की जधन्य स्थिति, नीललेश्या की उत्कृष्ट स्थिति से एक समय अधिक और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की होती है । तेजोलेश्या की स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की (वैमानिक की ) होती है । तेजोलेश्या की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष (भवनपति और व्यन्तर देवों की अपेक्षा) और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की होती है। 'जो उत्कृष्ट स्थिति तेजोलेश्या की है उससे एक समय अधिक पद्मलेश्या की जघन्य स्थिति होती है और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त अधिक दस सागरोपम की है | जो उत्कृष्ट स्थिति पद्मलेश्या की है, उससे एक समय अधिक शुक्ललेश्या की जघन्य स्थिति होती है, और शुक्ललेश्या की स्थिति उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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