SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ लेश्या-कोश .५६ जीव और लेश्या समपद १-नारकी और लेश्या समपद :____ (क) नेरइया णं भंते ! सव्वे समलेस्सा ? गोयमा ! नो इण? सम? । से केणटेणं जाव नो सव्वे समलेस्सा ? गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता । तंजहा पुवोववनगा य, पच्छोववन्नगा य, तत्थ णं जे ते पुरोववन्नगा ते णं विसुद्धलेस्सतरागा, तत्थ णं जे ते पच्छोववन्नगा ते णं अविसुद्धलेस्सतरागा, से तेण?णं । -भग० श १ । उ २ । प्र ७५-७६ पृ० ३६१ (ख) एवं जहेव वन्नेणं भणिया तहेव लेस्सासु विशुद्धलेसतरागा अविशुद्धले. सतरागा य भाणियव्वा । -पण्ण० प १७ । उ १ । सू ३ । पृ० ४३५ नारकी दो तरह के होते हैं यथा-१ पूर्वोपपन्नक, २ पश्चादुपपन्नक। उनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं वे विशुद्धलेश्या वाले होते हैं, तथा जो पश्चादुपपन्नक हैं वे अविशुद्धलेश्या वाले होते हैं । अतः नारकी समलेश्या वाले नहीं होते हैं। २–पृथ्वीकाय यावत् वनस्पतिकाय, तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय तथा मनुष्य और लेश्या समपद :-- क-पुढविकाइयाणं आहारकम्मवन्न लेस्सा जहा नेरइयाणं x x जहा पुढविकाइया तहा जाव चउरिंदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया । xx मणुस्सा जहा नेरइया। -भग० श १ । उ २। प्र८४, ८६, ६०, ६३ । पृ० ३६२ ख-पुढविकाइया आहारकम्मवन्नलेस्साहि जहा नेरड्या ४ एवं जाव चउरिदिया। पंचेदिय तिरिक्खजोणिया जहा नेरक्या। मणुस्सा सव्वे णो समाहारा। सेसं जहा नेरइयाणं। -पण्ण० प १७ । उ १। सू ८-६ । पृ० ४३६ पृथ्वीकाय यावत् बनस्पतिकाय, तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यच पंचेन्द्रिय, मनुष्य-नारकी की तरह समलेश्या वाले नहीं होते हैं। ३–देव और लेश्या समपद :१-असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार देव में क-(असुर कुमारा ) एवं वन्नलेस्साए पुच्छा ! तत्थ णं जे ते पूव्वोववन्नगा तेणं अविशुद्धवन्नतरागा, तत्थ जे ते पच्छोववन्नगा ते णं विशुद्धवन्नतरागा, से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy