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________________ ( 58 ) केवलदर्शन की प्राप्ति के बाद भगवान महावीर आमलकप्पा पधारे थे-ऐसा उल्लेख मिलता है। छद्मस्थ भगवान् महावीर विहार करते-करते जब उत्तर चावाल या उत्तवाचाल प्रदेश में पधारे । वहाँ से 'सेयविया' पधारे । वहाँ उस नगरी का श्रमणोपासक राजा प्रदेशी ने भगवान की महिमा की। और फिर वहाँ से विहार कर भगवान सुरभिपुर पधारे। भगवान महावीर के सिद्धान्तों में निहित सार्वजनीन और कल्याणकारी भावनाओं के कारण ही ईसा की दूसरी शताब्दी में आचार्य समंतभद्र ने उनके तीर्थ को सर्वोदय नाम दिया। बौद्ध ग्रंथ 'महावस्तु के अनुसार महात्मा बुद्ध के प्रथम शिक्षक वैशाली के अलार और उद्दक थे। बुद्ध ने अपना प्रारंभिक जीवन इनके सान्निध्य में एक जैन के रूप में व्यतीत किया था। उनकी परम अनुयायी आम्रपाली वैशाली की ही निवासी थी । __ जर्मन विद्वान डॉ० याकोवी ने महावीर-निर्वाण का समथ ई० पू० ४७७ माना है। इसका आधार यह है कि मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक ई० पू० ३२२ में हुआ और हेमचन्द्र कृत परिशिष्ट पर्व (८-३३६) मे अनुसार यह अभिषेक महावीर के निर्वाण से १५५ वर्ष पश्चात् हुआ था। इस प्रकार महावीर निर्वाण ३२२+१५५ - ४७७ वर्ष पूर्व सिद्ध हुआ। डा० काशीप्रसाद जायसवाल का मत है कि बौद्धों की सिंहलदेशीय परम्परा में बुद्ध का निर्वाण ई० पू० ५४४ माना गया है। तथा मज्झिमनिकाय के सामगाम सुक्त में व त्रिपिटक में अन्यत्र भी इस बात का उल्लेख है कि भगवान बुद्ध को अपने एक अनुयायी द्वारा यह समाचार मिला था कि पावा में महावीर का निर्वाण हो गया। ऐसी भी धारणा रही है कि इसके दो वर्ष पश्चात् बुद्ध का निर्वाण हुआ। अतएव यह सिद्ध हुआ कि महावीरनिर्वाण का काल ई० पू० ५४६ है किन्तु विचार करने से उक्त दोनों अभिमत प्रमाणित नहीं होते। जैन साहित्यिक तथा ऐतिहासिक एक शुद्ध और प्राचीन परम्परा है । जो वीर-निर्वाण को विक्रम संवत् से ४७० वर्ष पूर्व तथा शक संवत् से ६०। वर्ष पूर्व मानती है। इस परम्परा का ऐतिहासिक क्रम इस प्रकार है :-जिस रात्रि में वीर भगवान् का निर्वाण हुआ उसी रात्रि को उज्जैन के पालक राजा का अभिषेक हुआ। पालक ने १-पारयित्वा प्रभुरपि श्वेतवीं नगरौं ययौ । प्रदेशिना नरेन्द्रण जिनभक्त न भूषिताम् ।।२८६ ।। पौराऽमात्यचम्पाद्यैः प्रदेशी परिवारितः । मघवापरोऽभ्येत्य जगन्नाथमवन्दत ॥२८७॥ -त्रिशलाका ० पर्व १०.३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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