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________________ ( 57 ) देवों से सुरक्षित थे। बलभद्र के भी गदा, रत्नमाला, मुसल और हल-ये चार रन थे जो कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र और तप के समान लक्ष्मी को बढाने वाले थे। त्रिपृष्ठ की स्वयंप्रभा आदि को लेकर सोलह हजार स्त्रियाँ थी और बलभद्र के चित्त को प्रिय लगने वाली ८००० स्त्रियाँ थी। बहुत आरम्म, बहुत परिग्रह को धारण करने वाले त्रिपृष्ठ नारायण उन स्त्रियों के साथ चिरकाल तक रमण कर सातवीं पृथ्वी को प्राप्त हुआ-सप्तम नरक गया। इसी प्रकार अश्वग्रीव प्रतिनारायण भी सप्तम नरक गया। बलभद्र ने भाई के दुःख से दुःखी होकर उसी समय सुवर्ण कुंभ नामक योगिराज के पास संयम धारण कर लिया और क्रम-क्रम से अनगार-केवली हुआ। देखो-त्रिपृष्ठ और विजय ने साथ ही साथ राज्य किया और चिरकाल तक अनुपम सुख भोगे परन्तु नारायण त्रिपृष्ठ समस्त दुःखों के महान गृह स्वरूप सातवें नरक में पहुँचा और बलभद्र सुख के स्थानभूत त्रिलोक के अग्रभाग पर जाकर अधिष्ठत हुआ। इसलिए प्रतिकूल रहने वाले इस दुष्टकर्म को धिक्कार हो। जब तक इस कर्म को नष्ट न कर दिया जावे तब तक इस संसार में सुख का भागी कौन हो सकता है। त्रिपृष्ठ, पहले तो विश्वनंदी नाम का राजा हुआ, फिर महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ, फिर त्रिपृष्ठ नाम का अर्धचक्री नारायण हुआ, फिर पापों का संचय कर सातवें नरक में गया । बलभद्र, पहले विशाख भूति नाम का राजा था फिर मुनि होकर महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ, वहाँ से चयकर विजय नाम का बलभद्र हुआ और फिर संसार को नष्ट कर परमात्म अवस्था को प्राप्त हुआ। प्रतिनारायण पहले विशाखनंदी हुआ, फिर प्रताप रहित होकर चिरकाल तक संसार में भ्रमण करता रहा, फिर अश्वग्रीव नाम का विद्याघर हुआ जो कि त्रिपृष्ठ नारायण का शत्रु होकर अधोगति-नरकगति को प्राप्त हुआ। जिनेश्वर जघन्य रूप से ७२ वर्ष की आयु, अपने ज्ञान का उत्कर्ष करते हुए जीवित रहते हैं। दिगम्बर परम्परानुसार भगवान के शरीर का वर्ण-स्निग्ध नील वर्ण था तथा देह का मान चौरानवें अंगुल का उल्लेख है । आगम में कहा है कि अस्सील समायारो, अरहा तित्थंकरो महावीरो। तस्सील-समायारो, होति उअरहा महापउमो । -ठाण. स्था ।सू ६२ संगहणी गाथा अर्थात जैसा आचार भगवान महावीर का था वैसा ही आचार भावी अहंद महापद्म का होगा। भगवान महावीर जिन-जिन नगरी में चतुर्मास किये हैं उनमें 'आमलप्पा' नगरी का नाम नहीं है। सूत्रों में आर्य देश की राजधानियों में इस नगरी की गणना नहीं है । भगवान महावीर के साधना काल के विहार में 'आमलकप्पा' का उल्लेख नहीं है । केवलज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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